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________________ सागर प्रशिक्षण शिविर 145 कायम रहे – इस पावन भावना से योग्य अध्यापकों को प्रशिक्षित करने का संकल्प किया गया, जो इन प्रशिक्षण शिविरों के रूप में प्रतिफलित हुआ है। ___ जब हमने इन्हें आरम्भ किया था, तब हमें भी यह कल्पना न थी कि ये शिविर इतने उपयोगी सिद्ध होंगे।सीमित उद्देश्य से आरम्भ किये गये इन शिविरों ने शीघ्र ही बहुउद्देशीय (multipurpose) रूप धारण कर लिया। इनमें आज मात्र धार्मिक अध्यापकों को प्रशिक्षित ही नहीं किया जाता, अपितु बालशिक्षा, प्रौढशिक्षा, महिलाशिक्षा के साथ-साथ प्रवचनों के माध्यम से जनसमुदायशिक्षण (mass teaching) भी चलता है। इसप्रकार इसमें दस वर्ष के बालक-बालिका से लेकर अस्सी वर्षीय वृद्ध आत्मार्थी भी लगातार बीस दिन तक अनवरत भाग लेते हैं । प्रतिदिन प्रात:काल ५ बजे से लेकर रात्रि १०.३० तक ८-१० घण्टे के सघन कार्यक्रम चलते हैं। आध्यात्मिक शिक्षा का इसप्रकार का वातावरण बन जाता है कि लोग समाचारपत्र पढ़ना भी भूल जाते हैं और लोगों को दिनांक और वार भी याद नहीं रहते। ___आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिस स्थान पर यह शिविर लगता है, उसके आस-पास २५-३० नवीन वीतराग-विज्ञान पाठशालायें तो खुल ही जाती हैं। आज जो सम्पूर्ण देश में ३५३ पाठशालायें चल रही हैं, वे सब इन प्रशिक्षण शिविरों का ही परिणाम है ।आज जब छात्रों के अभाव में धार्मिक शिक्षा देने वाले महाविद्यालय बन्द होते जा रहे हैं या मृतप्राय: हो रहे हैं, तब इन शिविरों की बदौलत ही श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय में छात्रों के प्रवेश के लिये भीड़ उमड़ती है और वह चुन-चुनकर सीमित छात्रों को प्रवेश देता है । चालीस से पचास हजार तक का सत्साहित्य जन-जन तक पहुँच जाता है तथा इतने के ही धार्मिक प्रवचनों के कैसेट भी बिकते हैं । आध्यात्मिक पत्रिका वीतराग-विज्ञान एवं समाचारपत्र जैनपथ प्रदर्शक के भी सैकड़ों ग्राहक इस अवसर पर बनते हैं। आस-पास के स्थानों में दैनिक शास्त्रसभायें एवं तत्वगोष्ठियाँ आरम्भ हो जाती हैं। - इसप्रकार सामूहिक रूप से धार्मिक वातावरण का निर्माण होता है।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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