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________________ 144 बिखरे मोती इसके वास्तविक स्वरूप का सम्यग्ज्ञान तो इसके प्रत्यक्षदर्शन करने से ही संभव है। पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट एवं उसके सहयोग से जयपुर से संचालित तत्त्वप्रचार संबंधी सभी गतिविधियों को बल प्रदान करनेवाले इन श्री वीतरागविज्ञान आध्यात्मिक शिक्षण-प्रशिक्षण शिविरों के जन्म की भी एक कहानी है । यह तो आपको विदित ही है कि कोमलमति बालकों में धार्मिक संस्कार डालने, उन्हें जैनतत्त्व संबंधी सामान्य ज्ञान देने एवं सदाचार युक्त नैतिक जीवन बिताने की प्रेरणा देने के पावन उद्देश्य से पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट ने अपने उदय के साथ ही सर्वप्रथम सरल, सुबोध एवं सहजबोधगम्य रोचक धार्मिक पाठ्यपुस्तकें तैयार कराई; और उनके अध्ययन-अध्यापन के लिए स्थान-स्थान पर वीतराग - विज्ञान पाठशालाएँ स्थापित की तथा उनकी परीक्षा लेने के लिए श्री वीतराग - विज्ञान विद्यापीठ परीक्षा बोर्ड की भी स्थापना की। पाठशालाओं के सतत निरीक्षण एवं परीक्षार्थी छात्रों की उत्तर-पुस्तिकाओं को देखकर लगा कि जबतक अध्यापक बन्धुओं को धार्मिक पुस्तकों के अध्यापन की विधि में आधुनिक रीति से प्रशिक्षित नहीं किया जायगा, तबतक वाँछित उद्देश्य की प्राप्ति संभव नहीं है; क्योंकि अप्रशिक्षित और अयोग्य अध्यापक न तो छात्रों को सही ज्ञान ही दे सकते हैं और न वह आकर्षण ही पैदा कर सकते हैं, जिससे प्रेरित होकर छात्र धर्माध्ययन में रुचिवन्त हों । आज दुनियाँ बहुत आगे बढ़ गयी है। ऐसी स्थिति में धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में वही पुराना रवैया कैसे अपनाया जा सकता है ? गहराई से अनुभव किया गया कि वर्णीजी द्वारा संचालित धार्मिक शिक्षा की क्रान्ति में शिथिलता का एकमात्र कारण प्रशिक्षित सुयोग्य अध्यापकों का अभाव ही है। यदि हमें धार्मिक शिक्षा के महा कार्य को गति प्रदान करना है तो इस दिशा में गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए। अनेक दृष्टिकोणों से गम्भीरता से विचार-विमर्श करने के उपरान्त आगामी पीढ़ी में जैन तत्वज्ञान अपने मूल रूप में सुरक्षित रहे तथा धार्मिक संस्कार भी
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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