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सागर प्रशिक्षण शिविर
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काम करने का अवसर तो मुझे विगत् १८ वर्ष से प्राप्त है, मैं उनकी कार्यक्षमता का कायल रहा हूँ, पर मुझे प्रतीति होता है कि छाबड़ाजी उनके बहुत अच्छे सहयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
श्री वीतराग - विज्ञान आध्यात्मिक शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट की अनेक उपलब्धियों में से एक अभूतपूर्व अद्भुत उपलब्धि है, जिसके माध्यम से जैनधर्म-शिक्षा जगत में एक नई क्रान्ति का सूत्रपात हुआ है, अनेक नये कीर्तिमान स्थापित हुए हैं।
सागर में लगनेवाला यह शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर उन्नीसवाँ है, इसके पूर्व अठारह प्रशिक्षण शिविर भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों के विभिन्न नगरों में लग चुके हैं, जिनमें ३१३५ अध्यापक धार्मिक-अध्ययन कराने में प्रशिक्षित हो चुके हैं। जयपुर में दो; कोटा, उदयपुर, अजमेर एवं भीलवाड़ा में एक-एक; इसप्रकार राजस्थान में छह; विदिशा में दो, इन्दौर, छिन्दवाड़ा, भिण्ड में एक - एक; इसप्रकार मध्यप्रदेश में पाँच; आगरा, ललितपुर एवं फिरोजाबाद में एक - एक; इसप्रकार उत्तरप्रदेश में तीन; सोलापुर, मलकापुर एवं वाशिम में एक-एक; इसप्रकार महाराष्ट्र में तीन एवं प्रान्तिज (गुजरात) में एक; इसप्रकार कुल १८ शिविर अब तक लग चुके हैं।
इनमें से जयपुर, कोटा एवं उदयपुर शिविरों को गुरुदेव श्री कानजी स्वामी का सान्निध्य भी प्राप्त रहा है। साथ में विद्वद्वर्य श्री खीमचन्दभाई एवं श्री बाबूभाई जबतक स्वस्थ रहे, तबतक उनका समागम प्रत्येक शिविर को अनिवार्य रूप से मिलता रहा है। आदरणीय विद्वद्वर्य श्री लालचन्द भाई, राजकोट एवं श्री जुगलकिशोरजी 'युगल' कोटा का समागम तो अब भी प्रत्येक शिविर को लगभग प्राप्त ही रहता है। इनके अतिरिक्त मेरे अग्रज पण्डित रतनचन्दजी शास्त्री एवं पण्डित ज्ञानचन्दजी भी इसके स्थायी सदस्य हैं। श्री नेमीचन्दजी पाटनी इसके सूत्रधार हैं, उनके बिना इसकी कल्पना भी संभव नहीं रहती ।
इनके अतिरिक्त लगभग और भी २५ व्यक्ति बीस दिन तक लगातार शिक्षणकार्य में सहयोग देते हैं, जब कहीं यह शिविर अपनी अपूर्व उपलब्धियों के साथ सम्पन्न होता है । स्थानीय लोगों के श्रम की तो गणना ही संभव नहीं है; क्योंकि उन्हें तो महीनों पहिले ही इसमें जुटना पड़ता है।