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बिखरे मोती मनोयोग से सुनती। सागर की धार्मिक जनता की आध्यात्मिक रुचि के दर्शन मुझे उससमय ही हुए; और मेरे हृदय में सागर के लिए एक सम्माननीय स्थान बन गया।
वह शिविर तारण-जयन्ती के असवर पर तारण-जयन्ती के उपलक्ष्य में ही लगा था। इस वर्ष फिर तारण-जयन्ती के अवसर पर ही मुझे सागर जाने का अवसर मिला। मुझे यह कहते हुए अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है कि इस वर्ष भी मुझे सागर में वही जागृति दिखाई दी, वही स्नेह मिला।
इस वर्ष तारणस्वामी के ग्रन्थराज ज्ञानसमुच्चयार एवं समयसार गाथा १६ पर प्रवचन करने का अवसर मिला। ज्ञानसमुच्चयसार पर हुए प्रवचनों को प्रकाशित करने का भाव श्रीमान् सेठ भगवानदासजी को हुआ है, जो 'गागर में सागर' नाम से प्रकाशित हो रहे हैं।
श्री सेठ भगवानदासजी एवं उनके अनुज स्व. श्री शोभालालजी पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के सत्समागम में निरन्तर रहे हैं। वे उनके सत्समागम का ‘लाभ लेने प्रतिवर्ष सोनगढ़ जाया करते थे और वहाँ तीन-चार माह रहते थे। उन्होंने वहाँ विशाल बंगला व अतिथि-निवास भी बनाया है।
यद्यपि वे इससमय अस्वस्थ चल रहे हैं, ८५ वर्षीय वृद्धावस्था है; तथापि शिविर में सोत्साह भाग लेते थे। उनकी भावना हुई कि इस वर्ष सागर में पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर द्वारा संचालित वीतराग-विज्ञान आध्यात्मिक शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर लगना चाहिए। परिणामस्वरूप तारण-जयन्ती के अवसर पर ही सागर समाज के सहयोग से ग्रीष्मकालीन आध्यात्मिक शिक्षणप्रशिक्षण शिविर लगाने के निश्चय की घोषणा की गई। परिणामस्वरूप यह शिविर सागर में लग रहा है।
- इस समय हमारे साथ पण्डित पूनमचन्दजी छाबड़ा, इन्दौर भी थे। इस शिविर के लगने में उनका सर्वाधिक श्रम रहा है। वैसे तो उनसे मेरा परिचय विगत् २५ वर्ष से है, तथापि उनकी कार्यकुशलता एवं क्षमता का परिचय मुझे इस अवसर पर ही प्राप्त हुआ।आदरणीय नेमीचन्दजी पाटनी के साथ