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________________ जरा मुड़कर देखें 139 लिए बलिदान ही किया जा सकता है। हमारा यह बहुमूल्य जीवन तो आत्महित और जिनवाणी की सेवा में ही सम्पूर्णतः समर्पित है। ____ मई का माह हमारे लिये अति महत्त्व का माह है; क्योंकि इसमें १० मई, १९८६ को पूज्य गुरुदेवश्री का ९७वाँ जन्मदिन है और २२ मई, १९८६ को प्रसिद्ध आध्यात्मिक प्रवक्ता बाबूभाई चुन्नीलाल मेहता के स्वर्गवास को १ वर्ष पूरा होने जा रहा है । १० मई, १९८६ को पूज्य गुरुदेवश्री की जन्म-जयन्ती तो सम्पूर्ण देश में स्थान-स्थान पर बड़े ही उत्साह से मनाई ही जा रही है, पण्डित श्री बाबूभाई चुन्नीलाल मेहता का प्रथम स्मृति दिवस भी गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट द्वारा संचालित प्रशिक्षण शिविर के आरंभ होने के एक दिन पूर्व २२-५-८६ को बड़े ही उत्साह से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर हम पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के अनुयायियों, भक्तों, अन्धभक्तों, विरोधियों, अन्धविरोधियों सभी से विनम्र अनुरोध करना चाहते हैं कि कोई भी अब उनके दिवंगत होने के पाँच वर्ष बाद भी राग-द्वेषवश इसप्रकार के कार्य न करें, व्यवहार न करें कि जिससे न केवल उनकी प्रतिष्ठा धूमिल होती हो, अपितु जिन-अध्यात्म एवं जैनसमाज की भी अपूरणीय क्षति हो रही है। __पूज्य गुरुदेवश्री के समान ही सभी आत्मार्थीजन व्यर्थ के वाद-विवाद से स्वयं को सम्पूर्णतः पृथक् कर आत्महित में ही सम्पूर्णत: संलग्न हो जावें - इस पावन भावना से विराम लेता हूँ। असफलता के समान सफलता का पचा पाना भी हर एक का काम नहीं है। जहाँ असफलता व्यक्ति को, समाज को हताश, निराश, उदास कर देती है, उत्साह को भंग कर देती है। वहीं सफलता भी संतुलन को कायम नहीं रहने देती। वह अहंकार पुष्ट करती है, विजय के प्रदर्शन को प्रोत्साहित करती है। कभी-कभी तो विपक्ष का तिरस्कार करने को भी उकसाती नजर आती है। पर सफलता-असफलता की ये सब प्रतिक्रियाएँ जनसामान्य पर ही होती हैं, गंभीर व्यक्तित्व वाले महापुरुषों पर इनका कोई प्रभाव लक्षित नहीं होता। वे दोनों ही स्थितियों में संतुलित रहते हैं अडिग रहते हैं। सत्य की खोज, पृष्ठ २३३
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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