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बिखरे मोती
पूज्य गुरुदेव श्री के महाप्रयाण के अवसर पर हमने जो संकल्प किये थे, उनकी पूर्ति करने में जिनका वरदहस्त एवं परिपूर्ण सहयोग हमें निरन्तर प्राप्त रहा है, जिनके साथ सदा कंधे से कंधा मिलाकर हमने कार्य किया है, वे पण्डित खेमचन्दभाई जेठालाल सेठ एवं बाबूभाई चुन्नीलाल महेता शारीरिक दृष्टि से क्रमशः शिथिल होते गये; पर जबतक वे रहे, उनका सम्बल हमें अन्त तक प्राप्त रहा; पर आज वे भी हमारे बीच नहीं हैं।
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गुरुदेव श्री के अभाव में गये विगत पाँच वर्षों में अगणित विनाशकारी तूफान आये, गुरुदेव द्वारा आरंभित आध्यात्मिक क्रान्ति पर भीतर और बाहर से अगणित आक्रमण हुये और निरन्तर हो रहे हैं, फिर भी वह उद्दाम वेग से निरन्तर गतिशील है, अगणित अवरोधों के बाद भी उसकी गति अवरुद्ध नहीं हुई है। इसे हम अपना सौभाग्य ही नहीं समझते, अपितु संकल्प की कसौटी भी मानते हैं ।
कुछ भी हो, इन स्थितियों ने जहाँ एक ओर हमें एक अद्भुत दृढ़ता और दबावों को बरदाश्त करने की असीम क्षमता प्रदान की है तथा सुविचारित रीतिनीति पर हर कीमत पर चलते रहने का साहस जगाया है, वहाँ दूसरी ओर जगत
इस स्वरूप से बहुत कुछ विरक्त भी किया है, सामाजिक प्रपंचों से सर्वथा दूर रहने का भाव भी जगाया है; कौन कितने गहरे पानी में है - यह भी जानने को मिला है।
हमारी सुव्यवस्थित रीति-नीति यह है कि पूज्य गुरुदेव श्री और उनके द्वारा बताये गये जिनागम के रहस्य एवं तत्त्वज्ञान को हम किसी भी कीमत पर छोड़ने के लिये तैयार नहीं हैं। इसीप्रकार गुरुदेव श्री के महाप्रयाण के बाद सोनगढ़ में समागत विकृतियों का समर्थन भी हम किसी भी कीमत पर नहीं कर सकते हैं। न हमने आज तक उनका समर्थन किया है और न कभी करेंगे ही। पाँच वर्ष पूर्व किये गये संकल्प को हमने पूरी निष्ठा से आज तक निभाया है और आज उनके ९७वें जन्मदिवस पर अपने संकल्प को फिर दुहराते हैं। ध्यान रहे हमारा यह बहुमूल्य मनुष्यभव न तो किसी पोपडम के पोषण के लिए ही समर्पित हो सकता है और न इसे किसी की असीम महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के