SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 137 जरा मुड़कर देखें ___ "उन्होंने अपने जीवन में करीब ६५ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा व ३५ वेदीप्रतिष्ठायें करवाई और श्वेताम्बर बन्धुओं को दिगम्बरी बनाया। समयसार व मोक्षमार्गप्रकाशक जैसे ग्रन्थों के पठन-पाठन की लहर समाज में दौड़ाई तथा स्वाध्याय के प्रचार का बिगुल बजा दिया। विरोध होता रहा, लेकिन विरोध को सहते हुए दिगम्बर धर्म के प्रचार या प्रसार में किसी भी प्रकार की कसर उठा नहीं रखी। आबाल-वृद्धों में दिगम्बर धर्म का प्रचार किया और रात्रिभोजन, जमीकन्द आदि का त्याग उनके प्रभाव से स्वतः उनके अनुयायी करते गये। देश में सोनगढ़ एकप्रकार का प्रसिद्ध स्थान बन गया, जहाँ से उन्होंने जिनवाणी का तन-मन से जीवनपर्यन्त साधना करने के साथ ही देश में यत्र-तत्र-सर्वत्र प्रचार किया।शिक्षण-शिविर के द्वारा एक नई दिशा देकर धर्मप्रचार की एक अद्भुत योजना समाज को दी। प्राय: यह देखा गया है कि सम्प्रदाय बदलनेवाले अन्त में पथभ्रष्ट भी होते रहे हैं, लेकिन स्वामीजी सदा-लौहपुरुष बनकर रहे। स्वामीजी के उठ जाने से वास्तव में एक महान् प्रतिभासम्पन्न व पुण्यात्मा आध्यात्मिक वक्ता का सदा के लिए अभाव हो गया। गजट परिवार भी उनके देहावसान पर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हुआ वीरप्रभु से प्रार्थना करता है कि स्वामीजी को पूर्ण रत्नत्रय की प्राप्ति होकर शीघ्र मुक्तिलाभ हो।" ___ जैनगजट परिवार को आज कुछ भी लिखने के पहले अपनी उक्त पंक्तियों को ध्यान में रखना चाहिए। पूज्य स्वामीजी के महाप्रयाण के बाद जो कुछ भी हुआ, यदि उसकी आलोचना वह करता है तो बात और है, पर अब स्वामीजी की आलोचना करना क्या स्ववचनबाधित नहीं है ? स्वामीजी के महाप्रयाण के बाद सोनगढ़, जयपुर और सम्पूर्ण देश में जो कुछ भी हुआ है, उसके संबंध में अब मुझे कुछ भी नहीं कहना है; क्योंकि सम्पूर्ण समाज सम्पूर्ण घटनाचक्र एवं स्थितियों से भलीभाँति परिचित है।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy