SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 136 बिखरे मोती पास नहीं, चित्र भी हमारे पास नहीं; चलती-फिरती, बोलती फिल्म की बात तो बहुत दूर की कल्पना है । इस अर्थ में हम बड़े भाग्यशाली हैं। अब तक तो हमें उनका साक्षात् लाभ मिलता था, पर अब हमें एकलव्य बनना होगा। उनके अचेतन चित्रों से, साहित्य से, टेप से, चेतन शिष्यों से देशना प्राप्त करनी होगी। अब क्या होगा ? होगा क्या ? दुनिया तो अपनी गति से चलती ही रहती है, वह तो कभी रुकती नहीं। बड़े-बड़े लोग आये और चले गये, पर यह दुनिया तो निरन्तर चल ही रही है, इसकी गति में कहाँ रुकावट है ? जगत की बात ही क्यों सोचते हो ? यह सोचो न कि हम सबको भी तो एक दिन इसीप्रकार चले जाना है। 'अब क्या होगा ?' इस किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति को तोड़ो न ! छोड़ो न इस व्यर्थ के विकल्प को और चल पड़ो उस रास्ते पर, जो गुरुदेव श्री ने बताया है और जगत को बताओ वह रास्ता, जो गुरुदेवश्री ने आपको व हम सबको बताया है। भगवान महावीर के चले जाने पर गौतम गणधर रोने नहीं बैठे थे, अपितु महावीर की बताई राह पर चलकर स्वयं महावीर (सर्वज्ञ) बन गये थे । यदि हम गुरुदेव श्री के सच्चे शिष्य हैं तो हमें भी गुरुदेवश्री के चले जाने पर वही राह अपनानी चाहिए, जो महावीर के अनन्यतम शिष्य गौतम ने अपनाई थी । गुरुदेव श्री के अभाव में उदासी तो सहज है, पर निराशा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उठो! मन को यों निराश न करो और चल पड़ो उस राह पर । बातों से नहीं, आओ ! हम सब मिलकर अपने कार्यों से दुनिया को इस प्रश्न का उत्तर दें, दुनिया की इस शंका का समाधान प्रस्तुत करें कि अब क्या होगा ?" — • यह है हमारा वह संकल्प, जिसे हमने गुरुदेव श्री के महाप्रयाण पर व्यक्त किया था । 1 पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी क्या थे ? इसके संबंध में आज कोई कुछ भी क्यों न कहे; पर जब उनका महाप्रयाण हुआ था, तब उनका जीवनभर विरोध करनेवाले जैनगजट ने भी अपने संपादकीय में लिखा था
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy