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जरा मुड़कर देखें
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का। सो भाई, पिता के देहावसान होने पर उनके लगाये कारखाने बन्द नहीं होते, अपितु एक से अनेक होकर और अधिक द्रुतगति से चलते हैं । जब दो-चार पुत्रों के होने मात्र से ये कल-कारखाने द्विगुणित - चतुर्गुणित होकर चलते हैं, तो जिस धर्मपिता ने चार लाख से भी अधिक धर्मसंतानें छोड़ी हों, उसके चलाये कार्यक्रम कैसे बन्द हो सकते हैं ? वे तो शतगुणित - सहस्रगुणित होकर चलने चाहिए और चलेंगे भी। इसमें आशंकाओं के लिए कोई अवकाश नहीं है ।
हम उन गुरु के शिष्य हैं, जिन्होंने कभी पर की ओर नहीं देखा, मुड़कर पीछे नहीं देखा, जिन्होंने मात्र स्वयं को देखा और स्वयं के बल पर ही चल पड़े। वे जहाँ खड़े हो गए, वह स्थान तीर्थ बन गया; वे जिधर चल पड़े, उधर लाखों लोग चल पड़े। वे भगीरथ थे, जो अपने भागीरथ पुरुषार्थ द्वारा अध्यात्म-भागीरथी को हम तक लाये और जिन्होंने सारे जगत को उसमें डुबकी लगाने के लिए पुकारा । हम भी कुछ कम नहीं, उस भागीरथी की निर्मल जलधारा को हम जन-जन तक पहुँचायेंगे । वे अकेले थे, हम चार लाख से भी अधिक हैं; पर वह तूफानी वेग हममें कहाँ ? न सही तूफानी वेग से, पर चलेंगे हम भी ।
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'अब क्या होगा ?' पूछने वालों को हम विश्वास दिलाना चाहते हैं कि वही होगा जो गुरुदेव श्री ने बताया है, चलाया है, जो अभी चलता है, अभी तक चलता रहा है, वह अब भी चलता रहेगा । उसीप्रकार चलता रहेगा, उसमें कोई कमी नहीं आयेगी, हो सकता है कि उसकी चाल में और भी तेजी आ जावे। पर भाई ! गुरुदेव तो गये सो गये, उन्हें तो कहाँ से लायें ?
पर एक बात यह भी तो है कि हम जिस युग में पैदा हुए हैं, वह युग लाख बुरा हो, पर इसमें वे सुविधायें हैं, जो महावीर के, कुन्दकुन्द के, अमृतचंद्र के जमाने में नहीं थीं। आज गुरुदेव के हजारों घण्टों के टेप हमारे पास हैं, जिन्हें हम कभी भी उन्हीं की आवाज में सुन सकते हैं, घण्टों के उनके वीडिओ टेप ( बोलती फिल्म ) हैं, जिनके माध्यम से हम गुरुदेव श्री को चलते-फिरते देख सकते हैं, बोलते हुए देख सकते हैं, सुन सकते हैं, बस वे संदेह-सचेतन हमारे पास नहीं हैं, पर महावीर की, कुन्दकुन्द की, अमृतचंद्र की तो आवाज भी हमारे