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________________ जरा मुड़कर देखें (वीतराग-विज्ञान मई १९८६ में से) हम सब के अनन्य उपकारी पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी को दिवगंत हुए पाँच वर्ष से भी अधिक दिन हो गये हैं। उनके देहावसान पर हमने कुछ भावनाएँ व्यक्त की थीं। हम उन पर कहाँ तक चल सके हैं - इसके निरीक्षण के लिए हम जरा मुड़कर भी देखें और आत्मनिरीक्षण करें कि हम कहीं भटक तो नहीं गये हैं। हम अपने संकल्पित सन्मार्ग पर हैं या नहीं - इस बात को जानने के लिए हम अपने कुछ उन विचारों को प्रस्तुत करते हैं, जो हमने उनके महाप्रयाण के अवसर पर अभिव्यक्त किए थे। फरवरी, १९८१ ई. के आत्मधर्म (हिन्दी) के 'अब क्या होगा?' सम्पादकीय में लिखा था - ___ "गुरुदेवश्री के स्थान की पूर्ति की कल्पना भी काल्पनिक ही है; क्योंकि उनके स्थान की पूर्ति भी मात्र वे ही कर सकते थे। गुरुदेव तो गए, न तो उन्हें वापिस ही लाया जा सकता है और न नये गुरुदेव ही बनाये जा सकते हैं। गुरुदेव बनते हैं, बनाये नहीं जाते।जो बनाने से बनते हैं या बनाये जाते हैं; वे गुरु नहीं, महंत होते हैं, मठाधीश होते हैं। उनसे गुरुगम नहीं मिलता, गुरुडम चलता है। जिन गुरुदेवश्री ने जीवनभर गुरुडम का विरोध किया, उनके नाम पर गुरुडम चलाना न तो उपयुक्त ही है और न उन्हें भी इष्ट था, होता तो अपने उत्तराधिकारी की घोषणा वे स्वयं कर जाते। उनके जीवनकाल में भी जब उनसे इसप्रकार की चर्चायें की गईं तो उन्होंने उदासीनता ही दिखाई। ___ अतः उनके रिक्त स्थान की पूर्ति की चर्चा का कोई अर्थ नहीं है। रहा प्रश्न उनके द्वारा या उनकी प्रेरणा से संचालित तत्त्वप्रचार की गतिविधियों के भविष्य
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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