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________________ वीतराग - विज्ञान : एक वर्ष 131 द्वारा हमारे साथ किए गये छल-प्रपंच एवं अप्रामाणिक व्यवहार ने जनता को हमारे प्रति और भी अधिक संवेदनशील बना दिया है। जनता का 'वीतरागविज्ञान' के प्रति यह अपार स्नेह उन लोगों द्वारा किए गये अव्यवहार के प्रति रोष की भी परोक्ष अभिव्यक्ति है । 'वीतराग - विज्ञान' को निकालने और निकालते रहने की चुनौती को स्वीकार कर हमने अपने दृढ़ संकल्प को भी प्रत्यक्ष-परोक्ष अभिव्यक्ति प्रदान की है कि हम झंझटों में उलझे बिना निरन्तर जिनवाणी - गुरुवाणी के प्रचारप्रसार में शान्ति से लगे रहना चाहते हैं। हमारा दृढ़ विश्वास है कि विवादों में उलझकर चित्त को कलुषित करते रहना मानव जीवन की सबसे बड़ी हार है और उनसे तटस्थ रहकर आत्महित और आत्महितकारी चिन्तन-मननअध्ययन, उपदेश, लेखन में संलग्न रहना ही जीवन है, जीवन की सबसे बड़ी जीत है। हमें प्रसन्नता है कि जनता ने हमारी इस मनोभावना को जाना है, पहिचाना है, सराहा है, समर्थन दिया है, सहयोग दिया है और हमें अपने चुने हुए मार्ग पर निरन्तर चलते रहने के लिए उत्साहित किया है। तदर्थ उसके आभारी है एवं जनता के इस प्रोत्साहन को आदेश मानकर जीवन भर शान्ति से यही सब कुछ करते रहने के लिए कृतसंकल्प हैं । पूज्य गुरुदेवश्री की साधना भूमि सोनगढ़ हमारा तीर्थधाम है और उनकी प्रेरणा से देश-विदेश में निर्मित जिनमन्दिर हमारे जिनायतन हैं; उन्हें हम किसी भी स्थिति में न तो छोड़ ही सकते हैं और न ही उस आस्था का परित्याग ही कर सकते हैं, जो हमारे हृदय की गहराई में उनके प्रति विद्यमान है। हमारे श्रद्धास्पद तीर्थधाम पर अनधिकृतरूप से कब्जा किए लोगों से हमारी 'असहमति हो सकती है; क्योंकि वे गृहीत मिथ्यात्वपोषक प्रवृत्तियों द्वारा जिनशासन को विकृत करने का असफल प्रयास कर रहे हैं । समय किसी को क्षमा नहीं करता ? अतः हमारा दृढ़ विश्वास है कि यह सब भी क्षणिक ही है, अनित्य ही है, समय पर सब कुछ सहज ही ठीक हो
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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