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बिखरे मोती इस कठिन समय में हमने इस चुनौती को जनता-जनार्दन के भरोसे ही स्वीकार किया था। हमें यह कहते हुए अत्यन्त प्रसन्नता है कि बिना आश्वासन के ही जो विश्वास हमने जनता-जनार्दन पर किया था, उसे उसने बखूबी निभाया ही नहीं, अपितु हमें इस सीमा तक सहयोग दिया कि एक वर्ष का शिशु 'वीतराग-विज्ञान' आज आत्मनिर्भर है, अपना भार संभालने में स्वयं ही पूर्ण समर्थ है। क्या आज कोई बता सकता है कि विश्व का कोई भी मासिक पत्र, जो कि विशुद्ध आध्यात्मिक हो, अपने हितैषियों और पाठकों के सहयोग से बिना विज्ञापन लिए एक वर्ष में ही आत्मनिर्भर हो गया हो ? इससे अधिक अपेक्षा धर्मप्रेमी जनता से और की ही क्या जा सकती है ?
इस अवसर पर वीतराग-विज्ञान की वर्तमान स्थिति पर एक निगाह डाल लेना अनुचित नहीं होगा। __आज वीतराग-विज्ञान के १९ परमसंरक्षक सदस्य, १० संरक्षक सदस्य, ७ परमसहायक सदस्य, ४० सहायक सदस्य, ३०१८ स्थाई आजीवन सदस्य, २१८ अस्थाई आजीवन सदस्य और १४ विदेशी आजीवन सदस्य हैं - इसप्रकार कुल मिलाकर ३३२६ आजीवन सदस्य हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त लगभग २२०० वार्षिक, द्विवार्षिक और त्रिवार्षिक सदस्य हैं। इसप्रकार अभी यह प्रतिमाह ६००० छप रहा है।
हम अनुभव करते हैं कि जनता ने इस अद्भुत और अभूतपूर्व सहयोग के माध्यम से हमारे प्रति असीम स्नेह और वात्सल्य तो प्रदर्शित किया ही है, साथ ही हमारी तत्त्वप्रचार सम्बन्धी रीति-नीति का भी हार्दिक समर्थन किया है, अध्यात्म के प्रति आदर व्यक्त किया है, हमारी प्रतिपादन शैली एवं उसमें प्रतिपादित वीरवाणी के सार के प्रति अपना बहुमान व्यक्त किया है, पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा एवं विश्वास व्यक्त किया है। __ यद्यपि यह सत्य है कि जनता का यह अपार स्नेह आकस्मिक नहीं था, क्योंकि इसके पूर्व आत्मधर्म के २६०० परिपत्र हमारे पक्ष में भेजकर जनता ने हममें अपना अटूट विश्वास व्यक्त किया था। हाँ, यह अवश्य है कि कुछ लोगों
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