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________________ 129 ५ या वीतराग-विज्ञान : एक वर्ष ही थी; क्योंकि वे अच्छी तरह जानते थे कि उनके द्वारा किए तीव्र प्रहार इस समय मुमुक्षुओं को संगठित कर सकते हैं। यदा कदा वे लोग अपनी इन भावनाओं को भविष्यवाणी के रूप में व्यक्त भी कर देते थे। ऐसे कठिन समय में मुमुक्षु समाज के एकमात्र नेता श्री बाबूभाई चुन्नीलाल मेहता की दीर्घकालीन विषम अस्वस्थता; निरंतर साहस बँधानेवाले, हर अच्छे काम पर जमकर पीठ थपथपानेवाले विद्वद्वर्य श्री खीमचंदभाई का असामयिक स्वर्गारोहण तथा परिस्थितियों से दुखी होकर अन्तर की गहराई से तत्त्व प्रतिपादन करनेवाले पंडित श्री लालचंदभाई एवं उनके अनन्य सहयोगी डॉ. चन्दूभाई का सोनगढ़ ट्रस्ट की नवनिर्मित कार्यवाहक कमेटी से त्यागपत्र देकर समस्त प्रवृत्तियों से संन्यास लेकर बैठ जाना आदि स्थितियाँ भी हमारे सामने चुनौती के रूप में उपस्थित थीं। __इसप्रकार की स्थितियों में जबकि चलते हुए कार्यों को चलाना भी सहज नहीं रह गया था; कुछ नया आरंभ करना साहस ही नहीं, अति साहस का कार्य था। ___ यद्यपि उक्त विकट परिस्थितियों में भी पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट एवं श्री कुन्दकुन्द कहान तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट तथा उनकी सहयोगी संस्थाएँ पूज्य गुरुदेवश्री के पुण्यप्रताप एवं मंगल आशीर्वाद से संचालित तत्त्वप्रचार व प्रसार सम्बन्धी गतिविधियों के संचालन में पूरी शक्ति से जुटी हुई थीं, अपने कार्यों को निरन्तर विस्तार भी दे रही थीं, कृत्रिम-अकृत्रिम अन्तर्बाह्य विपत्तियों का दृढ़ता से सामना कर रही थीं; तथापि ऐसे अवसर पर कोई नया कार्य आरंभ करना या नई जिम्मेवारी लेना अतिसाहस नहीं तो और क्या था ? ___पर बड़ी ही चतुराई से, छल-बल से, पूज्य पुरुषों के नाम के सहारे विश्वास में लेकर यह उत्तरदायित्व हमारे ऊपर लाद दिया गया। जबतक छल-प्रपंच सामने आया, तबतक हम बहुत आगे बढ़ चुके थे, वीतराग-विज्ञान का एक अंक निकाल भी चुके थे। अब पीछे हटना न तो संभव ही था और न उचित ही; अतः हमने उक्त उत्तरदायित्व से मुँह न मोड़कर इस महान कार्य को आप सबके भरोसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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