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________________ १० वीतराग - विज्ञान : एक वर्ष ( वीतराग - विज्ञान संपादकीय अगस्त १९८४ में से ) इस अंक के माध्यम से वीतराग-विज्ञान दूसरे वर्ष में प्रवेश कर रहा है। एक वर्ष पूर्व जिन परिस्थितियों में इसका जन्म हुआ था, उनसे मुमुक्षु समाज और वीतराग - विज्ञान के पाठक अपरिचित नहीं। इसकी जन्मप्रक्रिया और उसके बाद जो कुछ घटा, उसने समस्त मुमुक्षु समाज को स्तम्भित कर दिया; क्योंकि ' पूज्य गुरुदेवश्री के पावन अध्यात्म और उनकी साधना भूमि से जुड़े लोग भी इसप्रकार का अप्रामाणिक व्यवहार करेंगे' – इसकी कल्पना भी कोई मुमुक्षुभाई नहीं कर सकता था। पूज्य गुरुदेव श्री के महाप्रयाण के बाद जिसप्रकार की स्थितियाँ बनती जा रही थीं; उनसे उत्पन्न विषमता के कारण पहले से ही संचालित तत्त्वप्रचार सम्बन्धी गतिविधियों के संचालन में ही कठिनाइयों का अनुभव हो रहा था, सुयोग्य समर्पित निष्पृही कार्यकर्त्ताओं की शक्ति अन्तर्बाह्य विग्रह में ही व्यर्थ बरबाद हो रही थी और चिन्तनशील विद्वानों की चिन्तनधारा एकता के सूत्र खोजने में ही उलझकर रह गई थी । मिलजुल कर किये गये अथक प्रयासों से यदि कोई सर्वसम्मत सर्वहितकारी रास्ता निकलता तो निहित स्वार्थ येन केन प्रकारेण उसे क्रियान्वय नहीं होने दे रहे थे। यह सब बातें बहुत दिनों तक छुपी न रह सकती थीं और न रहीं ही। सोनगढ़ के विचारों से असहमत लोग यद्यपि इस स्थिति से भरपूर लाभ उठाने की ताक में थे; तथापि चुप थे, क्योंकि वे लोग सोनगढ़ के सुगठित प्रचारतंत्र को अन्तर्विग्रह से स्वयं विघटित होते देखने के लिए आतुर हो रहे थे, आँख गड़ाये बैठे थे। उनकी यह चुप्पी सद्भावनामूलक न होकर कुटिल नीति का एक अंग
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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