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________________ एक युग जो बीत गया 127 मिलकर संकल्प करें कि हे गुरुदेव ! आपने जो कुछ हमें दिया है, हम उसे जन-जन तक अवश्य पहुँचायेंगे । गुरुदेव श्री के वियोग में अब उनकी वाणी ही की शरण है; क्योंकि वह आचार्य कुन्दकुन्द आदि आचार्यों के वचनानुसारिणी है। अतः अब हमें उसके अध्ययन, मनन, चिन्तन एवं प्रचार-प्रसार में तन-मन-धन से जुट जाना चाहिए । आत्महित के साथ-साथ जनसामान्य के लिए वैसा ही आत्महित की प्रेरणा देने वाला वैराग्यमय वातावरण जैसा कि गुरुदेव श्री के सान्निध्य में रहता था, बनाये रखने की व्यवस्था भी हमें करनी होगी, जिससे सामान्य आत्मार्थीजन प्रेरणा प्राप्त करते रहें । बहुत से मुमुक्षु भाई वर्ष में माह- दो माह गुरुदेव श्री की छत्रछाया में रहते थे । आज उनके सामने यह समस्या भी खड़ी है कि वे अब कहाँ जावेंगे? इसका समाधान भी हमें प्रस्तुत करना है । अन्यथा उनके आध्यात्मिक जीवन में शिथिलता आ जाना स्वाभाविक है । - गुरुदेवश्री की स्मृति बनाये रखने के लिए उनके पाषाणी स्मारक से इन गतिविधियों के सफल संचालन की अधिक आवश्यकता है, अधिक महत्व है; क्योंकि इनसे ही उनके बताये मार्ग का स्थायित्व रहेगा। यदि हम गुरुदेव श्री के सच्चे अनुयायी हैं तो हमें सर्वप्रथम इसकी व्यवस्था करना चाहिए कि गुरुदेवश्री की साधनाभूमि सोनगढ़ में जो कार्यक्रम उनके सद्भाव में चलते थे, वे उसीप्रकार निरन्तर चलते रहे । इन सब समस्याओं का समाधान हमें इस अवसर पर खोजना है। इस दृष्टि से भी यह जन्म - जयन्ती अत्यन्त महत्वपूर्ण है । मुझे आशा ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास है कि जो उत्तरदायित्व पूज्य श्री के अभाव में हमारे कंधों पर आया है, उसे हम सब मिलकर आसानी से वहन कर सकते हैं; क्योंकि गुरुदेवश्री ने हमें विधिवत गढ़ा है, सर्वप्रकार सुयोग्य बनाया है, सब-कुछ दिया है, किसी भी प्रकार कमजोर नहीं रहने दिया है। बस, आवश्यकता मात्र दृढ़संकल्प के साथ चल पड़ने की है ।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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