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________________ 126 बिखरे मोती कि गुरुदेव श्री के अभाव में हम लोगों की रीति-नीति क्या रहेगी? जिससे अप्रिय - अनिष्ट चाहने वाले लोग दुष्प्रचार न कर सकें, समाज को दिग्भ्रमित न कर सकें। अनुकूलों का मनोबल गिरने न पावें इसके लिए भी भावी योजनाओं के बारे में समुचित स्पष्टीकरण व प्रचार-प्रसार होना चाहिए। इस अवसर पर बर्ती गई जरा-सी गफलत, असावधानी अपूरणीय क्षति बन सकती है। यह अवसर गुरुदेव श्री के वियोग में रोने का नहीं है, उनके कोरे गीत गाने का भी नहीं है, अपितु उनके बताये सन्मार्ग को गंभीरता से अपना कर स्वहित करने के साथ-साथ उसे जन-जन तक पहुँचाने का महान कार्य सामूहिक रूप से करने का निश्चय करना है, किए हुए निश्चय को दृढ़ता से दुहराना है और पूरी शक्ति से उसे क्रियान्वित करने में जुट जाना है। उनके अभाव में मनाई जाने वाली उनकी यह प्रथम जन्म जयन्ती आज हमारे लिए कसौटी बनकर आई है। मुझे अच्छी तरह स्मरण है कि जब एकबार उनके सामने यह प्रश्न आया कि जन्म जयन्ती के इस आडम्बर से क्या लाभ है? तब वे सहजभाव से बोले थे कि "कुछ नहीं, बस बात यह है कि इस बहाने साहित्य की कीमत कम करने के लिए ज्ञानप्रचार में कुछ पैसा आ जाता है और जिनवाणी के अल्प मूल्य में घर-घर पहुँचने का सिलसिला आरंभ रहता है। इसे समाप्त करने से लाभ तो कुछ होगा ही नहीं, यह हानि हो सकती है। अतः चल रही है, सो चल रही है। " इस जन्म जयन्ती के अवसर पर भी हम इस प्रवाह को चालू रख सके तो मैं समझँगा कि हम उनके अभाव में उनकी जन्म जयन्ती उसी रूप में मना सके हैं । जहाँ तक मुझे स्मरण है, उनकी जन्म जयन्ती में आया पैसा सदा ज्ञानप्रचार अर्थात् शास्त्रों की कीमत कम करने पर ही लगता रहा है। गुरुदेव श्री की भावना को ध्यान में रखकर आगे भी हमें उक्त परम्परा को कायम रखना चाहिए । ज्ञानप्रचार की उत्कट भावना उनके हृदय में निरन्तर प्रवाहमान रहा करती थी। इस बात का अनुभव उनके नज़दीक रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भली-भाँति है। उनकी इस पावन मनोभावना का समादर करते हुए हम सब
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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