________________
एक युग जो बीत गया
125 ___ यदि हम यहाँ-वहाँ के विकल्पों में ही उलझे रहे तो फिर उन रहस्यों का क्या होगा, जो गुरुदेवश्री ने अपनी दिव्यवाणी द्वारा उद्घाटित किए थे और जो आज भी हमारे पास टेपों में सुरक्षित हैं । क्या वे उन्हीं में कैद रह जावेंगे? हमें उन्हें कागज पर लाना है, जन-जन तक पहुँचाना है। बहुत काम है हमारे सामने जो बहुत आसानी से किए जा सकते हैं और किए जाने चाहिए। ___ आज हम युग के मोड़ पर खड़े हैं और हमें ऐतिहासिक उत्तरदायित्व वहन करना है । इस दृष्टि से यह महोत्सव अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि इस अवसर पर हमें अपने कर्तव्य का चुनाव करना है।
समाज अभी तक 'देखें, अब क्या होता है?' इस मुद्रा में था। अब वह अपनी कल्पनानुसार अटकलें लगाने लगा है। गुरुदेवश्री कानजीस्वामी एवं उनकी क्रान्तिकारी आध्यात्मिक विचारधारा को जो कि आचार्य कुन्दकुन्द के अध्यात्म की ठोस भूमि पर पल्लवित हुई है, किन्हीं कारणों से नापसन्द करने वाले लोग, गुरुदेवश्री के अभाव में हमें कमजोर समझ कर तरह-तरह की अफवाहें उड़ाने लगे हैं। लोगों की दृष्टि में भावी रूपरेखा स्पष्ट न होने से तरहतरह की अफवाहें उड़ाने लगे हैं। लोगों की दृष्टि में भावी रूपरेखा स्पष्ट न होने से कहीं-कहीं सामान्यजन दिग्भ्रमित भी होने लगे हैं। अतः अब समय आ गया है कि हमें अपनी भावी योजनाओं को सुनिश्चित करना चाहिए, स्पष्ट करना चाहिए। इस दृष्टि से भी यह महोत्सव अपना विशेष महत्त्वं रखता है। ___ अनुकूलों और प्रतिकूलों सभी की निगाहें इस महोत्सव पर लगी हैं; क्योंकि हम सब अपनी बुद्धिमानी से किस ओर बढ़ रहे हैं - इसका संकेत इस अवसर पर बहुत कुछ स्पष्ट हो जायेगा। अनुकूल समाज भी बहुत दिनों तक अनिश्चय की स्थिति में नहीं रह सकता। भले ही हम लोग अपने मार्ग पर दृढ़ हों, पर युग परिवर्तन के काल में उसे स्पष्ट करना बहुत आवश्यक होता है, अन्यथा सामान्यजन में दिग्मूढ़ता की स्थिति निर्मित हो जाती है।
जिसप्रकार सरकार बदलने पर उसे अपनी नीतियों की घोषणा करना आवश्यक होता है; उसीप्रकार आज हमें समाज के सामने यह स्पष्ट करना होगा