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एक युग, जो बीत गया
(आत्मधर्म मई १९८१ में से) अक्षय तृतीया के ठीक एक दिन पूर्व वैशाख शुक्ला द्वितीया तदनुसार दि. ५-५-८१ को आध्यात्मिक युगस्रष्टा क्रान्तिकारी महापुरुष पूज्यश्री कानजीस्वामी का बानवेवाँ जन्मदिवस है। उनकी अनुपस्थिति में आयोजित यह उनका प्रथम जन्मदिवस महोत्सव है, जो कि उनकी साधनाभूमि सोनगढ़ (जिला भावनगर-गुजरात) में पाँच दिन के विस्तृत कार्यक्रमों के साथ विशालरूप में मनाया जा रहा है। __यद्यपि इस महोत्सव में वह उल्लास तो दिखाई देना संभव नहीं है, जो उनकी उपस्थिति में मनाये जाने वाले महोत्सवों में रहता था; तथापि यह महोत्सव अनेक दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
आध्यात्मिक क्रान्ति का एक युग जो पूज्यश्री कानजीस्वामी ने ४६ वर्ष पूर्व महावीर जयन्ती के दिन भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति के सामने मुँहपत्ती फेंककर आरंभ किया था, और जो इन छियालीस वर्षों तक लगातार अपनी क्रान्तिकारी आध्यात्मिक चर्चाओं से चर्चित ही नहीं रहा, अपितु सम्पूर्ण जैनजगत को आन्दोलित किये रहा है।
जिन-अध्यात्म के क्षेत्र में यह युग निश्चित रूप से श्री कानजीस्वामी युग' रहा है। इस सन्दर्भ में सिद्धान्ताचार्य पण्डित श्री कैलाशचन्द्रजी, वाराणसी के विचार द्रष्टव्य हैं - __ "कोई स्वीकार करे या न करे, किन्तु यदि कभी किसी तटस्थ इतिहासज्ञ ने जैनसमाज के इन तीन दशकों का इतिहास लिखा तो वह इस युग के इस