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बिखरे मोती पत्र में क्षमा माँग चुके हैं, प्रतिवाद प्रकाशित कर चुके हैं। अभी २ मार्च के अंक में आज के कुछ लोकप्रिय मुनिराजों को इस पत्र ने मिथ्यात्वशिरोमणि मारीचि लिखा है।
पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी की दिगम्बर धर्म एवं समाज को क्या देन है - इसका मूल्यांकन तो इतिहास करेगा। उसके बारे में अभी यहाँ हमें कुछ नहीं कहना है।
हमें तो आश्चर्य इस बात का होता है कि इसप्रकार की मनगढन्त बातें लिखते हुए उन्हें जरा भी संकोच क्यों नहीं होता?
पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी के स्वर्गवास पर जिसने एक पंक्ति नहीं लिखी, समाचार तक नहीं दिया; आज उसे उनकी गद्दी की चिन्ता हो रही है।
गुरुदेवश्री के महाप्रयाण से हमारे ऊपर जो अनभ्र वज्राघात हुआ है, उसका अनुचित लाभ उठाने का असफल प्रयास जो लोग कर रहे हैं, उन्हें हम बता देना चाहते हैं कि अन्तत: वे निराश ही होंगे। उन्हें हम बता देंगे कि हम उस परमप्रतापी गुरु के शिष्य हैं, जिसने जीवनभर उनके प्रहार बिना उत्तर दिये झेले हैं और जो जीवनभर अपने उत्कृष्ट मार्ग पर निरन्तर चलते रहे हैं।
हमारी नीति वाद-विवादों में उलझने की न कभी रही है और न रहेगी। यदि ऐसा गंभीर आरोप नहीं लगाया जाता तो हम अभी भी कुछ नहीं लिखते। __ सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज को हम एक बार फिर आमंत्रण देते हैं, सानुरोध आग्रह करते हैं कि वे गुरुदेवश्री की जन्म-जयन्ती के अवसर पर सोनगढ़ अवश्य पधारें और अपनी आँखों से सब देखें। उस समय भावी रचनात्मक कार्यों की और भी अनेक योजनाएँ बनेंगी, उनमें आपके परामर्श का सहयोग भी हमें प्राप्त हो सकेगा। ___ 'जैनदर्शन' नामक समाचार पत्र के इस कुत्सित प्रयास से सोनगढ़ के सम्बन्ध में जो भ्रम या शंकाएँ-आशंकाएँ समाज में निर्मित हुई हैं या हो रही हैं, वे सब इस स्पष्टीकरण से निर्मूल हो जावेंगी - ऐसा हमारा पूर्ण विश्वास है।