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एक अत्यन्त आवश्यक स्पष्टीकरण
119 ___ पण्डित श्री फूलचन्दजी की उपेक्षा का कोई प्रश्न ही नहीं है। वे सोनगढ़ के ही नहीं, समस्त दिगम्बर जैन समाज के एक जाने-माने दिग्गज विद्वान् हैं। उनके अभूतपूर्व ऐतिहासिक योगदान को दिगम्बर जैन समाज कैसे भूल सकता है? अब सोनगढ़ में पंचमेरू-नन्दीश्वर जिनालय का निर्माण होगा, जिसमें पूज्यश्री कानजी स्वामी एवं परमपूज्य आचार्यों तथा विद्वानों के अमृत वचनों के साथ-साथ बहिनश्री के वचनामृत भी उत्कीर्ण होंगे, जो कि किसी भी प्रकार अनुचित नहीं है; क्योंकि जब और विद्वानों के वचन उत्कीर्ण हो सकते हैं तो बहिनश्री के क्यों नहीं? वे भी आत्मानुभवी विदुषी महिलारत्न हैं। उनका स्वामीजी के अनुयायियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनकी उपेक्षा किसी भी प्रकार उचित नहीं है, संभव भी नहीं है । देशभर के मन्दिरों में ज्ञानी विद्वानों के वचन लिखे हुए हैं, अतः यह कोई नया उपक्रम भी नहीं है। ___ मैं समाज को विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि वह किसी प्रकार के प्रचार की शिकार न हो, भ्रम में न रहे । पूज्य गुरुदेवश्री के अभाव में एक उनके अभाव के अतिरिक्त कोई कमी नहीं आवेगी, उनकी वाणी का प्रचार-प्रसार दूनीचौगुनी गति से होगा।
मई के प्रथम सप्ताह में पूज्य गुरुदेवश्री के जन्म-दिवस का उत्सव सोनगढ़ में दि. २ मई १९८१ से ६ मई १९८१ ई. तक पाँच दिन का रखा गया है, उसमें आप सबको आमंत्रण है। आप सब आकर अपनी आँखों से स्वयं देखें कि कहाँ है दिगम्बरों की उपेक्षा और कहाँ है किसी प्रकार की कोई कमी?
सावन का शिविर जैसा प्रतिवर्ष लगता था, उसीप्रकार लगेगा; बहिनश्री की जयन्ती भी होगी। गुरुदेवश्री का स्मृति-दिवस भी विशाल पैमाने पर मनाया जायेगा। जितने विद्वान पर्दूषण में प्रवचनार्थ गत वर्षों में जाते रहे हैं; उनसे भी अधिक जावेंगे। पहिले से अधिक साहित्य छपेगा। छपेगा क्या? छप रहा है। अभी-अभी गोम्मटेश्वर बाहुबली समारोह के अवसर पर श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तीर्थसुरक्षा ट्रस्ट ने छः भाषाओं में चार लाख रु. का सत्साहित्य प्रकाशित किया है। यद्यपि उसकी कीमत लागत-मूल्य ही रखी गई थी; तथापि