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बिखरे मोती
ट्रस्टीमण्डल, पदाधिकारी और प्रमुख कार्यकर्त्ताओं में एक भी ऐसा नहीं है जो श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज से आया हो; तो फिर किसी के वर्तमान में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। अत: यह कहना कि स्वामीजी की गद्दी किसी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक को सौंपी गई है - कितना सत्य है, समाज स्वयं विचार करे। ट्रस्ट के अध्यक्ष पूज्य श्री रामजीभाई माणिकचन्द दोशी हैं, जो कि वर्षों से ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। ट्रस्ट के संस्थापक-सदस्यों में उनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इस बात से समस्त जैन समाज पूर्णतः परिचित ही है ।
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ऐसे अवसर पर जबकि दिगम्बर तीर्थ क्षेत्र अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ शिरपुर में श्वेताम्बर - दिगम्बरों का संघर्ष चल रहा हो और पूज्यश्री कानजीस्वी के अनुयायी भी दिगम्बर समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हों; तब इसप्रकार की शरारत करना दिगम्बर समाज के हित में क्षम्य नहीं होना चाहिए ।
श्री नेमीचन्दजी पाटनी और पण्डित श्री बाबूभाई मेहता के अतिरिक्त सोनगढ़ ट्रस्ट में अभी-अभी सेठ श्री रतनलालजी गंगवाल कलकत्ता वालों का लिया जाना इस बात का प्रमाण है कि वहाँ जन्मजात दिगम्बरों का पूर्ण सन्मान ही नहीं, अपितु प्रत्येक कार्य में उनका सक्रिय योगदान, सहयोग एवं प्रभुत्व भी है, किसी भी प्रकार की कोई उपेक्षा का प्रश्न ही नहीं है। जो भी कार्य सोनगढ़ में होंगे व हो रहे हैं, वे सब सर्वसम्मति से ही हो रहे हैं और होंगे भी । पंडित श्री बाबूभाई मेहता आज भी सोनगढ़ के प्राण हैं । श्री I कुन्दकुन्द कहान तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट के तो वे अध्यक्ष हैं और भी सभी ट्रस्टों के वे प्रायः ट्रस्टी हैं।
अभी-अभी जो कार्य विभाजन हुआ है, उसमें समस्त प्रचार व प्रभावना कार्य जैसे आत्मधर्म, शिविर संचालन, प्रकाशन आदि महत्वपूर्ण कार्य श्री नेमीचन्दजी पाटनी के संयोजकत्व में गठित समिति ने संभाले हैं, जिनमें पण्डित श्री बाबूभाई मेहता, डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, पण्डित ज्ञानचन्दजी आदि उनके महत्त्वपूर्ण सहयोगी हैं।
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