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एक अत्यन्त आवश्यक स्पष्टीकरण ( आत्मधर्म अप्रेल १९८१ में से )
'जैनदर्शन' नामक समाचार पत्र ने अपने १६ मार्च, १९८१ के सम्पादकीय में समाज में भ्रम फैलाने वाली अनेक मनगढ़न्त बातें लिखी हैं, जिनसे वर्तमान समाज में तो अनेक प्रकार के भ्रम उत्पन्न हो ही सकते हैं, साथ ही दिगम्बर समाज का अहित चाहने वाले भी भविष्य में इससे अनुचित लाभ उठाने का प्रयत्न कर सकते हैं ।
यद्यपि 'आत्मधर्म' की नीति वाद-विवादों से पूर्णत: अलिप्त रहने की है, किसी भी प्रकार के प्रतिवाद करने की नहीं है: तथापि यहाँ दिगम्बर समाज और धर्म के हित में वस्तुस्थिति का स्पष्टीकरण करना अत्यन्त आवश्यक हो गया है ।
'जैनदर्शन' लिखता है कि "कानजीभाई की गद्दी किन्हीं श्वेताम्बरमूर्तिपूजक महाशय को सौंपी गई है। "
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यह एकदम झूठ एवं शरारतपूर्ण है। पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की न तो कोई गद्दी स्थापित की गई है और न उसे किसी को सौंपा ही गया है। सोनगढ़ की चल-अचल सम्पत्ति एवं धर्मप्रभावना के कार्य आज भी उन्हीं लोगों के हाथ में हैं, जिनके हाथ में पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के समय में थे। उनमें सभी व्यक्ति पूर्णत: दिगम्बर धर्म को मानने वाले हैं, एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है कि जो गैर- दिगम्बर हो । उनमें नए और पुराने दिगम्बरों जैसा कोई भेद नहीं है। पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी के अनुयायियों में या तो वे लोग हैं जो स्थानकवासी सम्प्रदाय को छोड़कर दिगम्बर जैन हुए हैं या फिर दिगम्बर समाज के वे लोग हैं, जो उनके आध्यात्मिक प्रवचनों से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बने हैं