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बिखरे मोती __ आशा है समाज इस ज्वलन्त समस्या के समाधान के लिए खुले दिल से विचार करेगी। इसे सामाजिक राजनीति में न उलझावें । जैनसमाज के पत्रकार बन्धुओं से भी अनुरोध है कि वे भी इसके समुचित समाधान के लिए उपाय सुझाते रहें, चर्चा-परिचर्चा चालू रखें। जहाँ से भी संभव हो इसका समाधान खोजें।
विवेकी को विकल्प है कि समाज चिन्ता ही न करती रहे, कुछ करे? अन्यथा हम चर्चा ही करते रहेंगे और समय हमारे हाथ से निकल जावेगा। यदि हम चाहते हैं कि भावी-पीढ़ी विद्वत् समाज से वंचित न रहे तो हमें कुछन-कुछ करना ही होगा और शीघ्र करना होगा। एक विकल्प यह भी आता है कि समाज कभी विद्वानों से विहीन न होगा; क्योंकि यदि अन्य विद्यालय नहीं भी चले तो भी उक्त विद्यालय समाज को अनेक विद्वान देगा और विद्वत् समाज का भावी इतिहास उनका होगा।
आशा है इस वेवाक विश्लेषण से समाज इस समस्या के समुचित प्रयास हेतु गहराई से विचार करेगा।
आत्मा का स्वभाव जैसा है वैसा न मानकर अन्यथा मानना, अन्यथा ही परिणमन करना चाहना ही अनन्त वक्रता है। जो जिसका कर्ताधर्ता-हर्ता नहीं है, उसे उसका कर्ता-धर्ता-हर्ता मानना ही अनन्त कुटिलता है। रागादि आस्रवभाव दुःखरूप एवं दु:खों के कारण हैं, उन्हें सुखस्वरूप एवं सुख का कारण मानना; तद्प परिणमन कर सुख चाहना; संसार में रंचमात्र भी सुख नहीं है, फिर भी उसमें सुख मानना एवं तद्रूप परिणमन कर सुख चाहना ही वस्तुतः कुटिलता है, वक्रता है । इसीप्रकार वस्तु का स्वरूप जैसा है वैसा न मानकर, उसके विरुद्ध मानना एवं वैसा ही परिणमन करना चाहना विरूपता है।
धर्म के दशलक्षण, पृष्ठ ५०-५१