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पण्डित परम्परा का भविष्य : एक सुझाव
115 विद्वान तैयार नहीं हो रहे हैं - यही समस्या है जो आज समाज को चिन्तित किए है। ___कुछ लोग इस समस्या के समाधान के लिए नवीन महाविद्यालय खोलने
की बात करते हैं तो विचार आता है कि जब वर्तमान विद्यालयों की भी यह स्थिति है कि उन्हें छात्र नहीं मिल रहे तो फिर नवीन विद्यालय खोलने का क्या औचित्य है? पर अभी-अभी गत वर्ष श्री टोडरमल दिगम्बर सिद्धांत महाविद्यालय के नाम से जयपुर में एक महाविद्यालय खुला है और उसमें छात्रों की भीड़ इसप्रकार आ रही है कि प्रवेश के लिए लिखित परीक्षायें ली जाती हैं, इन्टरव्यू को बुलाया जाता है, तब प्रवेश मिलता है। सुना जाता है कि एम.काम., बी.काम., बी.ए., इन्जीनियरिंग एवं एम.बी.बी.एस. का कोर्स छोड़-छोड़कर छात्र इस महाविद्यालय में आ रहे हैं। ऐसा इसमें क्या आकर्षण है - इस ओर समाज का ध्यान जाना स्वाभाविक है।
कहा जाता कि वहाँ निःशुल्क आवास व भोजन की सुन्दर व्यवस्था है, पर वह तो अन्य महाविद्यालयों में भी है। यह भी कहा जाता है कि वे ५०० रु. माह सर्विस की गारन्टी देते हैं, किन्तु कहते हैं यहाँ तो लखपतियों के बच्चे भी प्रवेश पाने को लाइन में खड़े हैं, प्रविष्ट भी हुए हैं, पढ़ भी रहे हैं। उन्हें पाँच सात वर्ष बाद ५०० रुपये माह की नौकरी की गारन्टी क्या महत्त्व रखती है? इसीप्रकार इन्जीनियर और डॉक्टरों अथवा एम. काम. वालों को भी यह राशि कैसे आकर्षित कर सकती है ?
विचारने पर पता चलता है कि वहाँ पर प्रदान किया जानेवाला आध्यात्मिक वातावरण ही वह जादू है, जिसके आकर्षण से यह सब हो रहा है और जिसकी
ओर समाज का ध्यान नहीं है। विवेकी चाहता है कि महाविद्यालयों के कार्यकर्ता एवं अधिकारी गण वहाँ जाकर उन कारणों का बारीकी से अध्ययन करें और उन्हें यदि अच्छे लगें तो स्वयं भी अपनायें, जिससे छुहारे से सिकुड़ते समाज की निधिरूप जो महाविद्यालय हैं, वे एकबार फिर खिल उठे।
इच्छुक व्यक्ति १३ अगस्त से पूर्व ही इस को देखें; क्योंकि सुना है १५ अगस्त से सोनगढ़ में चलने वाले शिविर में उक्त महाविद्यालय के सभी छात्र चले जावेंगे।