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जागृत समाज (जैनपथप्रदर्शक, १ जून, १९७८ के अंक से)
अपने को पढ़ा-लिखा और होशियार कहने वाला उच्च वर्ग भारतीय जनता को भले ही अशिक्षित नासमझ कहता रहे, पर समझदार भारतीय जनता ने सन् १९७७ में चुपचाप जो जनक्रांति करके दिखा दी, उससे अपनी समयानुकूल समझदारी का प्रमाण प्रस्तुत कर दिया है। उसने बता दिया है कि भारतीय जनता जागृत है, उसे बहकाया नहीं जा सकता। आजमगढ़ में जनता सरकार को झटका देकर एकबार फिर उसने बता दिया है कि उसे उसके हित में काम किये बिना बहुत दिनों तक फुसलाया नहीं जा सकता।
उसीप्रकार दिगम्बर जैन समाज के तथाकथित समझदार लोग भले ही. समझते रहें कि दिगम्बर जैन समाज भोली है, नासमझ है, उसे अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिये चाहे जैसा बहकाया-फुसलाया जा सकता है; किन्तु दिगम्बर जैन समाज ने तीर्थक्षेत्र कमेटी के चुनाव में यह साबित कर दिया है • कि वह कलहप्रिय लोगों के हाथ का खिलौना नहीं बन सकती। उसने कलहप्रिय पण्डितों के चंगुल में फंसे महामंत्री को जो करारी हार दी है, उसने यह साबित कर दिया है कि समाज विघटनकारी प्रवृत्तियों को बिल्कुल पसंद नहीं करती है।
प्रसन्नता है कि यह बात पराजित महामंत्री ने भी अनुभव कर ली है। जैसा कि उन्हें बाद में व्यक्तिगत चर्चाओं में कहते भी सुना गया; पर जबतक बात उनकी समझ में आई, तबतक समय हाथ से निकल चुका था।
वस्तुतः वे इस योग्य थे भी नहीं कि इतनी महान संस्था के महामंत्री पद को संभाल सकें । उन्हें यह पद अचानक ही प्राप्त हो गया था; जिसे वे संभाल