________________
स्वयं बहिष्कृत
107 __ (२) इतने महत्त्वपूर्ण आदेश की प्रमाणिकता के लिए क्या हस्ताक्षर भी आवश्यक नहीं समझे गये? यह तो शाह आयोग की गवाहियों जैसा काम है कि हर आदमी अपने अपराध के लिए इन्दिरा गांधी का नाम लिए जाता है और प्रमाण मांगने पर कहता है कि उनके सचिव ने मौखिक आदेश दिये थे।
आज भी जाकर आप पूछ सकते हैं उन आचार्यों और मुनिराजों से, जिन्होंने हस्ताक्षर किये हैं। उन्हें ढंग से पता ही नहीं है कि उनके आदेशों में क्या क्या लिखा है? क्या इतने बड़े आदेश निकालकर कोई भूल सकता है, जिन पर समाज का भविष्य निर्भर हो।
अब यदि इन आदेशों की सच्चाई पर भरोसा भी कर लिया जाए तो प्रश्न उठता है कि क्या आचार्यों का आदेश सामान्य गृहस्थों पर भी चलता है या अकेले उनसे दीक्षित शिष्यगणों पर ही। यदि संघ पर ही चलता है, गृहस्थों पर नहीं; तो वे ऐसा स्पष्ट आदेश कैसे दे सकते हैं कि "तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष को हम आदेश देते हैं कि......
क्या यह भाषा वीतरागी दिगम्बर मुनिराजों की हो सकती है?
यदि गृहस्थों पर भी उनका आदेश चलता है तो फिर एकबार अपने संघ में स्थित या एकलविहारी उन दीक्षित शिष्यों को ही अपने अनुशासन में रख लें, जिनके शिथिलाचार से समाज में मुनिधर्म बदनाम हो रहा है। फिर गृहस्थों को आदेश निकालें। . ___ यदि साधुओं ने आदेश नहीं माना तो वे संघ से निष्कासन, दीक्षाभंग आदि दंड दे सकते हैं, यदि गृहस्थों ने नहीं माना तो क्या करेंगे? यह भी बतायें। पुलिस तो उनके पास है नहीं। हो भी तो क्या समताधारी मुनिराज इन चक्करों में पड़ेंगे?
फिर एक प्रश्न यह भी है कि गृहस्थ दीक्षित तो हैं नहीं कि उन पर एक ही आचार्य या मुनिराज का आदेश चले। एक आचार्य आदेश देते हैं कि कुन्दकुन्द कहान ट्रस्ट को सहयोग मत करो, दूसरे कहते हैं सहयोग करो, फिर गृहस्थ क्या करेंगे?