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________________ 106 बिखरे मोती उक्त बात पर विचार करने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि जैसा कि पिछले दिनों अखबारों में जो बार-बार आशंका प्रगट की जा रही थी, वह सच है। समाचार-पत्रों में आदेश के बारे में प्रश्न उठाये गये थे कि क्या आदेश निकालने के पूर्व उन आचार्यों एवं मुनिराजों ने, जिनके नाम से आदेश है, मिलकर कहीं विचार-विमर्श किया था क्या? क्या उन्होंने किसी आदेश को स्वयं लिखा था या किसी बने बनाए ड्राफ्ट पर हस्ताक्षर किये थे। इन सबका एकमात्र उत्तर आता है कि 'नहीं'। न तो कहीं मिल-बैठकर विचार-विमर्श ही हुआ है और किसी मुनिराज द्वारा स्वयं कोई ड्राफ्ट बनाये जाने की बात तो बहुत दूर, देखा भी नहीं गया। हस्ताक्षर भी नहीं किये गये हैं। यदि इसमें कोई बात गलत है तो हमारा उन तथाकथित पण्डितों से आग्रह है कि वे उस हस्ताक्षर सहित आदेश का ब्लाक प्रकाशित करें। जब जिनवाणी के जलप्रवाह के विरुद्ध समाज के प्रमुख व्यक्तियों ने मार्मिक अपील प्रकाशित की थी, तब उसका मय हस्ताक्षरों सहित ब्लाक प्रकाशित किया गया था। तब भी इन तथाकथित पण्डितों ने उसकी प्रमाणिकता में संदेह प्रकट किये थे। अब देखते हैं कि अपनी बात सही सिद्ध करने के लिए उस आदेश को आचार्यों और मुनिराजों के ब्लाक सहित प्रकाशित करते हैं या नहीं। . इसमें एक सम्भावना यह भी है कि वे अब हस्ताक्षर करालें । पर हमें सत्य महाव्रत धारी मुनिराजों पर इतना भरोसा है कि उनके नाम से प्रचारित आदेश पर वे अब हस्ताक्षर नहीं करेंगे। यदि करना ही है तो अपने सत्यमहाव्रत को ध्यान में रखकर हस्ताक्षर करते समय अपने हाथ से उसपर तारीख भी डालेंगे। इस संदर्भ में विचारणीय बात यह है कि - (१) क्या इतने महत्त्वपूर्ण आदेश, जिसपर अनेक आचार्यों और मुनिराजों के नाम दिए हैं, निकालने के पूर्व विवेकी आचार्यों एवं मुनिराजों ने परस्पर विचार-विमर्श की आवश्यकता ही अनुभव नहीं की।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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