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________________ स्वयं बहिष्कृत ( जैनपथप्रदर्शक, १ फरवरी, १९७८ के अंक से ) आचार्यों और मुनिराजों के नाम पर तथाकथित पण्डितों द्वारा प्रचारित आत्मघाती आदेश की वास्तविकता समय के साथ-साथ स्पष्ट होती जा रही है। कहा जाता है कि जिनके नाम से यह आदेश निकाला गया है, उनसे सम्पर्क करने पर पता चला है कि उन्हें इसके बारे में पूरी तरह पता ही नहीं है ? जब उनसे पूछा गया कि आपने कोई आदेश निकाला है, तब उन्होंने तत्काल कहा कि भैया हम आदेश निकालने वाले कौन होते हैं। साधुओं का तो उपदेश होता है, आदेश नहीं। पर जब उन्हें बताया गया कि आपके नाम से ऐसा ऐसा आदेश प्रचारित हुआ है, तब वह कहने लगे - - "हाँ, कुछ समय पूर्व कुछ पण्डित आये थे । वे कह रहे थे कि सोनगढ़ वाले मुनिराजों की बहुत निन्दा करते हैं, पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति पानी में डालते हैं, नया पन्थ चला रहे हैं, उनके विरुद्ध आचार्य महाराज ने आदेश निकाला है । हमने कहा ठीक है। जब उन्होंने कहा आप भी सहमत हैं न, तो हमने कहा आचार्य महाराज ने जो किया, उससे असहमत होने का हमारा अधिकार ही क्या है।' " आपने उस आदेश पर हस्ताक्षर किये थे क्या? यह पूछने पर उन्होंने कहा आदेश के कागज 44 "काहे के हस्ताक्षर, किस पर" ? जब कहा गया पर" । " कागज था ही कहाँ, मौखिक बात थी । " जिनके नाम से आदेश प्रसारित है, उनमें से अधिकांश के इसी के आस पास उत्तर थे। ―
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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