SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 104 बिखरे मोती एकबार चढ़ती है, बार-बार नहीं। अतः अब चिढ़कर तेरहपंथ-बीसपंथ का झगड़ा खड़ा करने की सोच रहे हैं । लिखते हैं कुन्दकुन्द कहान ट्रस्ट तेरापंथियों का है। भाईसाहब कल तक तो इस ट्रस्ट वालों को दिगम्बर मानने को भी तैयार नहीं थे। अब ये तेरापंथी कैसे हो गये? ___ कैसे भी हो, इन्हें तो कुछ-न-कुछ चाहिए, पर अब समाज इतना भोला नहीं रहा जो इनके बहकावे में इतनी सरलता से आ सके। ___ मेरा समाज से अनुरोध है कि इनके बहकावे में न आवें। इन लोगों से भी आग्रह है कि अब ये भी विघटनकारी प्रवृत्तियों से विराम ले लें। इनका भला भी इसी में है। आत्मा के अनन्त गुणों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गुण श्रद्धा है। शेष समस्त गुण तो श्रद्धा का अनुसरण करते हैं । एक प्रकार से रुचि श्रद्धा का ही दूसरा नाम है। परपदार्थों से भिन्न अपनी आत्मा की रुचि ही सम्यक्-श्रद्धा है और निजात्मा से भिन्न परपदार्थों की रुचि ही मिथ्याश्रद्धा। बल रुचि का अनुसरण करता है; अतः बल वहीं पड़ता है, जहाँ रुचि होती है । अनन्त गुणों का बल उसी दिशा में कार्य करता है, जहाँ रुचि हो। यही कारण है कि आत्मरुचिवान व्यक्ति आत्मोन्मुखी हो जाता है और पररुचिवाला परोन्मुखीं। जिसके प्रति श्रद्धा होती है, उसे व्यक्ति अपना सर्वस्व समर्पण करने के लिए तैयार हो जाता है। यदि वह अपने में हुई तो अपने लिए और पर में हुई तो पर के लिए सर्वस्व लुटा देना ही उसकी वृत्ति है। आत्मश्रद्धान ही सम्यक् श्रद्धान है और सम्यक् श्रद्धान समस्त दुःखों से मुक्ति पाने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सोपान है। यह मुक्ति-महल की प्रथम सीढ़ी है; इसके बिना ज्ञान और चारित्र भी सच्चे नहीं हो सकते। ___सत्य की खोज, पृष्ठ ५४
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy