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________________ 102 बिखरे मोती थी? जब दिगम्बर जैन महासभा थी तो फिर सिद्धान्त संरक्षणी की क्या आवश्यकता थी? जब एक बम्बई का परीक्षा बोर्ड था तो फिर महासभा परीक्षा बोर्ड की क्या आवश्यकता थी? जब जैनगजट था तो फिर जैनदर्शन की क्या आवश्यकता थी? ___ क्या विद्वानों की एक संस्था पर्याप्त न थी? क्या महासभा सिद्धान्त का संरक्षण नहीं कर सकती थी? क्या बम्बई परीक्षा बोर्ड परीक्षाएँ नहीं ले सकता था, जो महासभा परीक्षा बोर्ड की आवश्यकता हुई? आज महासभा अपने परीक्षा बोर्ड को चला भी नहीं सकती, जो महावीर ट्रस्ट से इसके लिए सहायता माँगती है। किन्तु जब परिषद् परीक्षा बोर्ड बना तो भी हो हल्ला हुआ। वीतराग-विज्ञान विद्यापीठ परीक्षा बोर्ड बना तो भी विरोध किया गया। जबकि आज परिषद् और वीतराग-विज्ञान परीक्षा बोर्ड के पास लगभग बीस-बीस हजार छात्र हैं और अपने को सर्वाधिक प्राचीन कहने वाले परीक्षा बोर्ड मृतप्रायः हो रहे हैं। हो हल्ला करने वाली नई-नई युवा परिषदें बन रही हैं - इनका विरोध नहीं, शांति से ठोस काम करने वाली संस्थाओं का विरोध किया जा रहा है। विरोध यदि विवेक की सीमा में रहता तब भी ठीक था, जिस व्यक्ति ने सत्य और शान्ति पक्ष का निष्पक्ष भाव से समर्थन किया, सहयोग किया; इन स्वयंभू नेताओं ने उन्हें भी कोसना आरम्भ कर दिया। उन पर सरासर झूठे गलत इल्जाम लगाना आरम्भ कर दिये, अभी तक तो ये लोग निरीह विद्वानों पर ही 'पैसा बोल रहा' जैसे आरोप लगाते थे, पर अब इनके होंसले काफी बढ़ गये हैं। सर सेठ साहब भागचंदजी सोनी ने शान्ति की अपील पर हस्ताक्षर कर दिये तो लोग उन पर भी आरोप लगाने लगे कि वे भी पैसों में बिक गये हैं। समाज के सर्वमान्य नेता साहूजी पर भी इन लोगों ने भरपूर कीचड़ उछाली। उनका भी एकमात्र अपराध जिनवाणी के अपमान के विरुद्ध अपील पर हस्ताक्षर करना मात्र था। जब दक्षिण भारत के सर्वमान्य नेता प्रसिद्ध उद्योगपति एवं तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष सेठ लालचन्द हीराचन्दजी ने दोनों सुरक्षा कमेटियों के सहयोग की बात कही तो उन्हें भी इन लोगों ने सोनगढ़ी घोषित कर दिया।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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