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________________ और अब पूज्य समन्तभद्र महाराज भी ... ! (जैनपथप्रदर्शक, १ सितम्बर, १९७७ के अंक से) भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण महोत्सव से समाज में एक जागृति एवं एकता की लहर उत्पन्न हो गई थी, वह वर्तमान में भी चल रही है। यद्यपि निर्वाण महोत्सव समिति के समापन के साथ-साथ वह लहर कुछ धीमी अवश्य पड़ी है, पर लुप्त नहीं हुई। दिगम्बर जैन महासमिति के गठन और सक्रियता से वह फिर से नवजीवन प्राप्त कर रही है । गाँव-गाँव में महासमिति की शाखायें गठित हो रही हैं। जिस गति से इसका विस्तार चल रहा है और सम्पूर्ण समाज का इसको जैसा सहयोग प्राप्त हो रहा है, उसको देखते हुए लगता है कि थोड़े ही दिनों में दिगम्बर जैन महासमिति दिगम्बर जैन समाज की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था होगी। यद्यपि दिगम्बर जैन महासमिति का समाज में सर्वत्र स्वागत हुआ है और समाज का पूरा-पूरा सहयोग उसे प्राप्त हो रहा है; तथापि कुछ अहंमन्य कलहप्रिय लोग इसको कोसने में लगे हुए हैं। ये वही लोग हैं, जिन्होंने हमेशा ही अच्छे कामों का विरोध किया है। इनका जीवन ही विरोध में गया है। इनका कहना है कि जब समाज में पहिले से ही अनेक सभा और समितियाँ हैं तो इसकी क्या आवश्यकता है। इसी बात को लेकर ये लोग श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट का भी विरोध कर रहे हैं। कहते हैं कि जब एक तीर्थक्षेत्र कमेटी है तो इसकी क्या आवश्यकता थी? मैं इन लोगों से पूछना चाहता हूँ कि जब विद्वानों की एक प्रतिनिधि संस्था विद्वत् परिषद् थी तो फिर शास्त्री परिषद् की क्या आवश्यकता
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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