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बिखरे मोती
महावीर पच्चीससौवाँ निर्वाण - महोत्सव समिति' ही एक ऐसा ऐतिहासिक संगठन बना है, जिसकी पहुँच गाँव-गाँव तक है ।
यह ऐसे ही नहीं बन गया। इसके पीछे कितना श्रम, कितनी शक्ति, कितना समय और कितना व्यय हुआ है ? इसका अनुमान लगाना भी सम्भव नहीं है; क्योंकि यह सब कुछ सारे देश के द्वारा सम्पन्न हुआ है । यद्यपि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि समाज के सर्वमान्य नेता साहू शांतिप्रसादजी जैन का इसमें सर्वाधिक योगदान है, तथापि यह सब एक आदमी का काम नहीं है। इसमें देशवासी समस्त दिगम्बर समाज का भावनात्मक एवं सक्रिय सहयोग रहा है ।
समय रहते समाज ने यह अनुभव किया कि यदि यह संगठन एक बार विघटित हो गया तो ऐसा संगठन फिर दुबारा बनाना सम्भव नहीं है । यह तो एक अवसर था भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण वर्ष का कि जिसमें इतनी सहजता से यह संगठन बन गया । यह तो सिर्फ निर्वाण वर्ष के लिए था, अतः समय पर विघटित होगा ही । अतः यदि समय रहते इस संगठन को एक स्थाई अखिल भारतीय संगठन का रूप दे दिया जाय तो दिगम्बर समाज के लिए भगवान महावीर के पच्चीससौवें निर्वाण वर्ष की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी ।
फलस्वरूप सम्पूर्ण भारतवर्ष की प्रमुख संस्थाओं के प्रतिनिधियों की एक बैठक दिल्ली में रखी गई, जिसमें सारे भारतवर्ष के दो सौ से अधिक प्रतिनिधि सम्मिलित हुए । सर्वसम्मति से इस विशाल संगठन को 'भारतवर्षीय दिगम्बर 'जैन महासमिति' के नाम से स्थाई रूप देने का निर्णय लिया गया। प्रसन्नता की बात है कि सभी ने इसका हार्दिक स्वागत व समर्थन किया।
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संघ, मथुरा के प्रधानमंत्री खुशालचन्दजी गोरावाला ने समाज के हित में 'संघ को बिना शर्त इसमें विलीन करने के लिए तैयार हैं ' यह घोषणा की तथा इसीप्रकार का भाव परिषद् के अध्यक्ष बाबू महावीरप्रसादजी ने भी व्यक्त किया। महासभा के अध्यक्ष श्री लक्ष्मीचन्दजी छाबड़ा ने भी इसका स्वागत किया। उन्होंने अपना व्यक्तिगत हार्दिक समर्थन किया तथा महासभा की कार्यकारिणी में विचार कर शीघ्र निर्णय लेने का आश्वासन दिया।