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क्योंकि चारों ज्ञान से भी महामण्डित तीर्थकर । भी तप करें बस इसलिए तप करो सम्यग्ज्ञान युत ॥६०॥ स्वानुभव से भ्रष्ट एवं शून्य अन्तरलिंग से । बहिर्लिंग जो धारण करें वे मोक्षमग नाशक कहे ॥६१॥ अनुकूलता में जो सहज प्रतिकूलता में नष्ट हो । इसलिये प्रतिकूलता में करो आतम साधना ॥६२।। आहार निद्रा और आसन जीत ध्याओ आतमा । बस यही है जिनदेव का मत यही गुरु की आज्ञा ॥६३।। ज्ञान दर्शन चरित मय जो आतमा जिनवर कहा । गुरु की कृपा से जानकर नित ध्यान उसका ही करो ॥६४।।
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