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आत्मा का जानना भाना व करना अनुभवन । तथा विषयों से विरक्ति उत्तरोत्तर है कठिन ॥६५।। जबतक विषय में प्रवृत्ति तबतक न आतमज्ञान हो । इसलिए आतम जानते योगी विषय विरक्त हों ॥६६।। निज आतमा को जानकर भी मूढ़ रमते विषय में । हो स्वानुभव से भ्रष्ट भ्रमते चतुर्गति संसार में ॥६७।। अरे विषय विरक्त हो निज आतमा को जानकर । जो तपोगुण से युक्त हों वे चतुर्गति से मुक्त हों ॥६८।। यदि मोह से पर द्रव्य में रति रहे अणु प्रमाण में । विपरीतता के हेतु से वे मूढ़ अज्ञानी रहें ॥६९।।
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