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निज हीनता अर विभूति गुण - ऋद्धि महिमा अन्य की । लख मानसिक संताप हो है यह अवस्था देव की ।। १५ ।। चतुर्विध विकथा कथा आसक्त अर मदमत्त हो । यह आतमा बहुबार हीन कुदेवपन को प्राप्त हो ।। १६ ।। फिर अशुचितम वीभत्स जननी गर्भ में चिरकाल तक । दुख सहे तूने आजतक अज्ञानवश हे मुनिप्रवर ॥ १७॥ अरे तू नरलोक में अगणित जनम धर-धर जिया । हो उदधि जल से भी अधिक जो दूध जननी का पिया ॥ १८ ॥ तेरे मरण से दुखित जननी नयन से जो जल बहा । वह उदधिजल से भी अधिक यह वचन जिनवर ने कहा ॥ १९ ॥
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