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सदज्ञानदर्शनचरण से निर्मल तथा निर्ग्रन्थ मुनि। की देह ही जिनमार्ग में प्रतिमा कही जिनदेव ने॥१०॥ जो देखे जाने रमे निज में ज्ञानदर्शन चरण से। उन ऋषीगण की देह प्रतिमा वंदना के योग्य है॥११॥ अनंतदर्शनज्ञानसुख अर वीर्य से संयुक्त हैं। हैं सदासुखमय देहबिन कर्माष्टकों से युक्त हैं ॥१२॥ अनुपम अचल अक्षोभ हैं लोकान में थिर सिद्ध हैं। जिनवर कथित व्युत्सर्ग प्रतिमा तो यही ध्रुव सिद्ध है॥१३॥ सम्यक्त्व संयम धर्ममय शिवमग बतावनहार जो। वे ज्ञानमय निर्ग्रन्थ ही दर्शन कहे जिनमार्ग में॥१४॥
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