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आधीन जिनके मन-वचन-तन इन्द्रियों के विषय सब। कहे हैं जिनमार्ग में वे संयमी ऋषि आयतन ॥५॥ हो गये हैं नष्ट जिनके मोह राग-द्वेष मद। जिनवर कहें वे महाव्रतधारी ऋषि ही आयतन ॥६॥ जो शुक्लध्यानी और केवलज्ञान से संयुक्त हैं। अर जिन्हें आतम सिद्ध है वे मुनिवृषभ सिद्धायतन ॥७॥ जानते मैं ज्ञानमय परजीव भी चैतन्यमय। सद्ज्ञानमय वे महाव्रतधारी मुनी ही चैत्यगृह ।।८।। मुक्ति-बंधन और सुख-दुःख जानते जो चैत्य वे। बस इसलिए षट्काय हितकर मुनी ही हैं चैत्यगृह ॥९॥
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