________________
बोधपाहुड़
शास्त्रज्ञ हैं सम्यक्त्व संयम शुद्धतप संयुक्त हैं । कर नमन उन आचार्य को जो कषायों से रहित हैं ॥ १ ॥ अर सकलजन संबोधने जिनदेव ने जिनमार्ग में । छहकाय सुखकर जो कहा वह मैं कहूँ संक्षेप में ॥ २॥ ये आयतन अर चैत्यगृह अर शुद्ध जिनप्रतिमा कही । दर्शन तथा जिनबिम्ब जिनमुद्रा विरागी ज्ञान ही ॥ ३ ॥ हैं देव तीरथ और अर्हन् गुणविशुद्धा प्रव्रज्या । अरिहंत ने जैसे कहे वैसे कहूँ मैं यथाक्रम ॥४॥
( ३१ )