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स्फुट रचित यह चरित पाहुड़ पढ़ो पावन भाव से। तुम चतुर्गति को पारकर अपुनर्भव हो जाओगे॥४५।।
- --0__अपने भले-बुरे का उत्तरदायित्व प्रत्येक आत्मा का स्वयंका है। कोई किसी का भला-बुरा नहीं कर सकता, पर के भला-बुरा करने का भाव करके यह आत्मा स्वयं ही पुण्य-पाप के चक्कर में उलझ जाता है, बंध जाता है।
- आप कुछ भी कहो, पृष्ठ-१३
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