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तू जान श्रद्धाभाव से उन चरण-दर्शन - ज्ञान को । अतिशीघ्र पाते मुक्ति योगी अरे जिनको जानकर ॥४०॥ ज्ञानजल में नहा निर्मल शुद्ध परिणति युक्त हो । त्रैलोक्यचूड़ामणि बने एवं शिवालय वास हो । । ४१ । । ज्ञानगुण से हीन इच्छितलाभ को ना प्राप्त हों । यह जान जानो ज्ञान को गुणदोष को पहिचानने ॥ ४२ ॥ पर को न चाहें ज्ञानिजन चारित्र में आरूढ़ हो । अनूपम सुख शीघ्र पावें जान लो परमार्थ से ||४३|| इसतरह संक्षेप में सम्यक् चरण संयमचरण । का कथन कर जिनदेव ने उपकृत किये हैं भव्यजन ॥४४॥
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