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त्याग हो आहार पौष्टिक आवास महिलावासमय। भोगस्मरण महिलावलोकन त्याग हो विकथा कथन॥३५॥ इन्द्रियों के विषय चाहे मनोज्ञ हों अमनोज्ञ हों। नहीं करना राग-रुस ये अपरिग्रह व्रत भावना ॥३६।। ईर्या भाषा एषणा आदाननिक्षेपण सही। एवं प्रतिष्ठापना संयमशोधमय समिती कही॥३७॥ सब भव्यजन संबोधने जिननाथ ने जिनमार्ग में। जैसा बताया आतमा हे भव्य ! तुम जानो उसे ॥३८॥ जीव और अजीव का जो भेद जाने ज्ञानि वह। रागादि से हो रहित शिवमग यही है जिनमार्ग में॥३९॥
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