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हिंसा असत्य अदत्त अब्रह्मचर्य और परिग्रहा। इनसे विरति सम्पूर्णतः ही पंच मुनिमहाव्रत कहे ॥३०॥ ये महाव्रत निष्पाप हैं अर स्वयं से ही महान हैं। पूर्व में साधे महाजन आज भी हैं साधते ॥३१॥ मनोगुप्ती वचन गुप्ती समिति ईर्या ऐषणा। आदाननिक्षेपण समिति ये हैं अहिंसा भावना ।।३२।। सत्यव्रत की भावनायें क्रोध लोभरु मोह भय । अर हास्य से है रहित होना ज्ञानमय आनन्दमय॥३३॥ हो विमोचितवास शून्यागार हो उपरोध बिन । हो एषणाशुद्धी तथा संवाद हो विसंवाद बिन ॥३४॥
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