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दिशि - विदिश का परिमाण दिव्रत अर अनर्थकदण्डव्रत । परिमाण भोगोपभोग का ये तीन गुणव्रत जिन कहें ॥ २५ ॥ सामायिका प्रोषध तथा व्रत अतिथिसंविभाग है। सल्लेखना ये चार शिक्षाव्रत कहे जिनदेव ने ॥ २६ ॥ इस तरह संयमचरण श्रावक का कहा जो सकल है। अनगार का अब कहूँ संयमचरण जो कि निकल है ॥२७॥ संवरण पंचेन्द्रियों का अर पंचव्रत पच्चिस क्रिया ।
त्रय गुप्ति समिति पंच संयमचरण है अनगार का ।। २८|| सजीव हो या अजीव हो अमनोज्ञ हो या मनोज्ञ हो । ना करे उनमें राग-रुस पंच इन्द्रियाँ, संवर कहा ।। २९ ।। ( २६ )