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जो चोर लाबर लड़ावें अर यंत्र से क्रीडा करें । वे लिंगधर ये पाप कर जावें नियम से नरक में ॥१०॥ ज्ञान-दर्शन-चरण तप संयम नियम पालन करें । पर दुःखी अनुभव करें तो जावें नियम से नरक में ॥११॥ कन्दर्प आदि में रहें अति गृद्धता धारण करें । हैं छली व्याभिचारी अरे ! वे श्रमण नहिं तिर्यंच हैं ॥१२॥ जो कलह करते दौड़ते हैं इष्ट भोजन के लिये । अर परस्पर ईर्षा करें वे श्रमण जिनमार्गी नहीं ॥१३॥ बिना दीये ग्रहें परनिन्दा करें जो परोक्ष में । वे धरें यद्यपि लिंगजिन फिर भी अरे वे चोर हैं ॥१४॥
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