________________ 140 दशकरण चर्चा * अपूर्वकरण नामक अष्टम गुणस्थान पर्यन्त तो सभी दस करण होते हैं। * ऊपर अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानों में उपशान्तकरण, निधत्तिकरण, निकाचितकरण - ये तीन करण नहीं होते / वहाँ सात करण ही हैं। * ऊपर संक्रमण करण का अभाव हो गया, वहाँ छह प्रकार के ही करण होते हैं। * उपशांतकषाय ग्यारहवें गुणस्थान में संक्रमणकरण करता है। इस कारण वहाँ सात करण हैं, क्योंकि वहाँ मिथ्यात्व का संक्रमण पाया जाता है। * उससे ऊपर अयोगी में सत्त्व और उदय दो ही करण पाये जाते हैं। 1. उपाशान्तकषाय गुणस्थान में संक्रमणकरण मात्र मिथ्यात्व एवं मिश्रमोहनीय प्रकृति के ही होते हैं, अर्थात् इन दोनों के कर्मपरमाणु सम्यक्त्वमोहनीय रूप परिणम जाते हैं। अन्य कर्मों का संक्रमणकरण दसवें गुणस्थान में चला गया। (2) इतना विशेष है कि जयधवला के अनुसार उपाशान्तकषाय आदि गुणस्थानों में बन्ध एवं उत्कर्षणकरण भी नहीं माना है। जयधवला 14, पृष्ठ 37-38 / (3) “दसकरणीसंग्रह" ग्रन्थ में भी ग्यारहवें आदि गुणस्थानों में प्रकृतिबंध की संभावना की अपेक्षा करके बन्धकरण भी कहा है, पर उत्कर्षणकरण तो वहाँ भी नहीं कहा। - जयधवल 14, पृष्ठ 38 (4) आठवें गुणस्थान तक अप्रशस्त उपशम होता है। -जयधवल 14, पृष्ठ 7 (5) आठवें के आगे अप्रशस्त उपशम होता है। आगमगर्भित प्रश्नोत्तर 1. प्रश्न :- निधत्तिकरण किसे कहते हैं? उत्तर :- विवक्षित प्रकृति के परमाणुओं का संक्रमण करने के और उदयावली में आने के योग्य न होना (उदीरणा के अयोग्य) निधत्तिकरण है। 2. प्रश्न :- निकाचितकरण किसको कहते हैं? उत्तर :- विवक्षित प्रकृति के परमाणुओं का संक्रमण करने अथवा उदीरणा करके उदयावली में आने के अथवा उत्कर्षण अथवा अपकर्षण करने के योग्य न होना निकाचितकरण है। निकाचित भी प्रकृतिनिकाचित, प्रदेश निकाचित, स्थितिनिकाचित व अनुभाग-निकाचित के भेद से 4 प्रकार का होता है। 2. यह चारों प्रकार की कर्मावस्थाएँ अपूर्वकरण गुणस्थान पर्यन्त ही होती हैं। 3. अनिवृत्तिकरणरूप परिणामों द्वारा यह निधत्ति एवं निकाचितकरण टूट जाता है। 4. यह निधत्ति निकाचितरूप या निकाचनारूप अवस्थाएँ सकल प्रकृतियों की सम्भव हैं। Aajadhyaanik Dwanlod (73)