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आगमगर्भित प्रश्नोत्तर (उपशांतकरण) अ.७
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दशकरण चर्चा कर्म के निषेकों से सर्वथा शून्य हो जाता है तब अन्तरकरण पूर्ण हो जाता है।
३. प्रश्न :- अन्तरकरण रूप उपशम किसको कहते हैं?
उत्तर :- अन्तरकरण का स्वरूप पहले कहा है, अन्तरकरण के द्वारा आगामी काल में उदय आने योग्य कर्म परमाणुओं को आगे-पीछे उदय आने योग्य करने का नाम अन्तरकरणरूप उपशम है।
४. प्रश्न :- सदवस्थारूप उपशम किसको कहते हैं?
उत्तर :- आगामी काल में उदय आने योग्य निषेकों के सत्ता में रहने को (उदीरणा के अयोग्य होने को) सदवस्थारूप उपशम कहते हैं।
५. प्रश्न :- उपशम भाव और उपशान्त करण में क्या अन्तर है? उत्तर :- उपशमभाव और उपशांतकरण में अंतर बता रहे हैं - १. उपशम भाव तो मोहनीय कर्म का ही होता है।
उपशान्तकरण सब प्रकृतियों का होता है। २. उपशान्तकरण आठवें गुणस्थान पर्यन्त ही होता है।
उपशम भाव ग्यारहवें गुणस्थान पर्यन्त पाया जाता है। ३. करणानुयोग में उपशम का 'अनुदय' अर्थ विवक्षित है। ४. जो कर्म उदय में नहीं दिया जा सके वह उपशान्त कहलाता है।'
कर्म को उदय के लिए अयोग्य करना उपशांत है। परिणामों की विशुद्धि से कर्मों की फलदान शक्ति का प्रकट न
होना उपशम है। ५. बध्यमान तथा उदीर्ण (व उदित) से भिन्न समस्त कर्मों की उपशान्त
संज्ञा है। (ध. १२/३०६)
६. यह उपशम या उपशमना दो प्रकार की है - ७. अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण - इन परिणामों के
द्वारा जो मोहनीय कर्म की उपशमना होती है, वह
प्रशस्तोपशमना है। ८. बन्ध के समय ही कुछ कर्मप्रदेशों में अप्रशस्त उपशमना होती है,
वह यहाँ प्रकृत है। कितने ही कर्म-परमाणुओं का बहिरङ्ग-अन्तरङ्ग कारणवश उदीरणा द्वारा उदय में न आने देना, इसे अप्रशस्त उपशमना
कहते हैं। १०. इस उपशमकरण से युक्त कर्म-परमाणुओं का अपकर्षण, उत्कर्षण
अथवा संक्रमण तो सम्भव होता है, परन्तु उदय-उदीरणा नहीं
होती। ११. इस उपशान्त द्रव्य को उदयावली में प्राप्त न कराने का नियम
अपूर्वकरण गुणस्थान पर्यन्त ही होता है। १२. अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में प्रवेश करने के प्रथम समय में ही
सभी कर्मों के उपशांत आदि तीनों करण (उपशांत, निधत्ति व निकाचित) युगपत् व्युच्छिन्न (नष्ट) हो जाते हैं।
manksD.KailabiData Annan Adhyatmik Dukaran Book
१.ध. ९/२३६
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