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दशकरण चर्चा
अब कर्म के उदीरणा के संबंध में चर्चा करेंगे - सही देखा जाय तो उदीरणा भी एक प्रकार से उदय ही है। भेद मात्र इतना ही है कि जो कर्म यथाकाल फल देता हैं, उसे उदय कहते हैं और जो कर्म अयथाकाल उदयकाल के पहले फल देता है, उसे उदीरणा कहते हैं।
विवक्षित कर्म उदयरूप से फल न देकर उदीरणारूप से ही फल देंगे। यह कार्य कर्म बंधने के पहले ही नियत होता है।
सामान्यरूप से सोचा जाय /जिनवाणी के आधार से विचार किया जाय तो कर्म के उदय के साथ-साथ जीव के भावों के निमित्त से कर्मों की उदीरणा भी हीनाधिक मात्रा में चलती ही रहती है।
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३. प्रश्न :- उदीरणा कब स्पष्ट रूप से समझ में आती है ?
उत्तर :- जब क्रोधादि कषायों में अथवा हास्यादि नोकषायों में अति-अति तीव्रता कदाचित् अनुभव में आती है। दुनियाँ को भी यह स्पष्ट देखने में आती है। तब समझना चाहिए कि इसे कषाय या नोकषाय की उदय के साथ-साथ कर्म की तीव्र उदीरणा भी हो रही है।
४. प्रश्न :- अभी स्पष्ट नहीं हुआ, उदाहरण से समझाओगे तो अच्छा रहेगा?
उत्तर :- क्रोधादि कषायों का उद्रेक होता रहे और बीच में समझाने के लिए मां, पिताजी, दादाजी, नानाजी अथवा कोई पूज्य पुरुष भी आवे तो भी कषाय शांत न हो, कषाय भड़कती रहे। बड़े पुरुषों का अपमान करने में भी संकोच न हो तो समझना चाहिए कि कषाय की उदीरणा हो रही है। विषय समझाने के लिए यह स्थूल दृष्टान्त है।
झगड़े के कारण मां, पिताजी आदि की हत्या करने में भी वह कषायी पुरुष पीछे नहीं रहता। इस तरह के कार्य कषायों के तीव्र उदय / उदीरणा में ही संभव है ।
उदय तथा सामान्य उदीरणा में कषाय का सामान्य कार्य चलता है, जो अज्ञानी मनुष्य के जीवन में सहजरूप से होता रहता है।
५. प्रश्न :- नोकषाय के विशेष उदीरणा का क्या दृष्टान्त हो सकता है?
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आगमाश्रित चर्चात्मक प्रश्नोत्तर ( उदीरणाकरण) अ. ४
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उत्तर :- स्वर्ग के देवों में ६ महीने तक लगातार हँसते रहने का कार्य हास्य नोकषाय के तीव्र उदय / उदीरणा का उदाहरण समझना चाहिए।
पुरुषवेद अथवा स्त्रीवेद के तीव्र उदीरणा के काल में पुरुष अथवा स्त्री अपनी जाति, धर्म, बड़े पुरुषों की आज्ञा, सभ्य समाज की सामान्य सदाचार की प्रवृत्तियाँ - इन सबका त्याग करने की प्रवृत्ति को वेद नोकषाय की तीव्र उदीरणा ही समझना चाहिए।
बाल स्त्री के साथ संबंध बनाने का भाव अथवा अयोग्य जाति, पशु आदि से संपर्क साधने का प्रयास - ये सभी परिणाम वेद कषाय के तीव्र उदय / उदीरणा के कार्य समझ लेना चाहिए ।
६. प्रश्न :- आपने पिछले प्रश्न के उत्तर में कहा 'उदय के साथ उदीरणा हो रही है' और ऊपर के प्रश्न के उत्तर में लिखा 'उदय / उदीरणा का कार्य' को मात्र उदीरणा क्यों नहीं कहते ?
उत्तर :- मात्र कर्म की उदीरणा हो रही हैं, ऐसा कभी नहीं होता । चलता उदीरणा हमेशा उदय के साथ ही होती है। यदि क्रोध कषाय का उदय चलता रहेगा, उसी समय क्रोध कषाय की उदीरणा होगी।
कभी ऐसा नहीं होगा कि उदय तो चल रहा है क्रोध कषाय का और मान कषाय की उदीरणा हो रही है।
जिस कषाय- नोकषाय का उदय रहेगा उसकी ही उदीरणा हो सकती है - होती है, ऐसा सामान्यतया समझना चाहिए। क्रोध के उदय के समय क्रोध की ही उदीरणा होगी। मान के उदय के समय मान की ।
७. प्रश्न :- आपने तो उदीरणा कषाय-नोकषाय पर ही घटित करके दिखाया। मोहनीय कर्म को छोड़कर अन्य घातिकर्मों की भी उदीरणा होती है या नहीं होती; स्पष्ट करें।
उत्तर :- आठों कर्मों में उदय के साथ उदीरणा होती है, समझाने में आसानी रहे; इसलिए कषाय-नोकषायों पर ही (मोहनीय में भी चारित्र मोहनीय पर भी) घटित करके बताया है।
८. प्रश्न:- वेदनीय कर्म पर उदीरणा घटित करके बताइए?