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________________ अधिकार चौथा (४ - उदीरणाकरण आगमाश्रित चर्चात्मक प्रश्नोत्तर 'उदीरणाकरण' विषय का विचार करते समय मेरे मन में अनेक प्रश्न उत्पन्न होते गये; उनका उत्तर देने का मैंने यथाशक्ति प्रयास किया है। १. प्रश्न :- यदि कर्मों में उदीरणाकरण हम नहीं मानेंगे तो क्या बिगड़ेगा? उत्तर :- आप अपनी ओर से कुछ भी मानने न मानने के लिए स्वतंत्र हो। अपने को जिनागम तथा जिनेन्द्र भगवान का श्रद्धावान कहते-मानते हुए यह बात नहीं हो सकती। जिनेन्द्र भगवान की अश्रद्धा से गृहीत मिथ्यात्व होगा और भी स्पष्ट और सूक्ष्मता से कहना हो तो ७० कोडाकोडी सागर का मिथ्यात्व कर्म का नया स्थिति + अनुभाग बंध होगा। हाँ, परीक्षा करके सत्य का स्वीकार करने की भावना से मन में प्रश्न उत्पन्न होते हैं तो स्वागत योग्य है। परीक्षा तो करना ही चाहिए। कर्म के उदीरणा का कार्य समझदार, शास्त्राभ्यासी एवं चतुर मनुष्य को अनुमान से भी समझ में आ सकता है। २. प्रश्न :- उदीरणा का कार्य अनुमान से कैसे समझ में आता है? उत्तर :- कर्म के उदीरणा का विषय समझाने के पहले ही - कर्म है, कर्म का उदय अर्थात् कर्मफल है, यह संक्षेप में समझाने का प्रयास करते हैं। . आगमाश्रित चर्चात्मक प्रश्नोत्तर (उदीरणाकरण) अ. ४ हम दुनियाँ में करोड़ों-अरबों आदमियों को देखते हैं। उनमें ज्ञान तथा बाह्य वैभव की अपेक्षा भेद देखते-जानते हैं। करोड़ों आदमियों को छोड़ दो, सगे अथवा जुड़वा भाई हों तो उनमें भी ज्ञान, शरीर का रूप आदि में नियम से भेद स्पष्ट जानने में आता है। इससे भी हमें जीवों को कर्म का बंध है, कर्म का उदय है, कर्मोदय से जीवों को अनुकूलप्रतिकूल फल प्राप्त होता है। ये सर्व विषय समझ में आ सकते हैं। दुनियाँ में ऐसा कोई कर्ता-धर्ता भगवान तो है नहीं, जो ऐसा भेद-भाव करने/रखने का काम करेगा। ____ बचपन में जो अज्ञानी एवं दरिद्री रहता है, वह बालक, युवा अवस्था में ज्ञानी व धनवान हो जाता है। युवा अवस्था में ज्ञानी व धनवान रहनेवाला वृद्धावस्था में पागल एवं दरिद्री हो जाता है। यह सब परिवर्तन कर्म के उदय का कार्य है। सामान्य आदमी भी यह स्वीकार करता है कि दुनियाँ में पाप एवं पुण्य कर्म हैं तथा पाप एवं पुण्य का कर्म फल जीवों को - मनुष्य, पशु आदि सबको मिलता ही रहता है। ___ यदि मनुष्य में पाप एवं पुण्य का फल नहीं होता तो एक मनुष्य मालिक बन जाता है और दूसरा उसका नौकर होकर रहता है। एक आदमी को जन्म से दवाई खाना अनिवार्य रहता है और दूसरे का जन्म से मरण तक दवाई के साथ कुछ संबंध ही नहीं आता। इन दिनों में पशुओं का - उनमें भी विशेष रूप से कुत्ते का भी पुण्य स्पष्ट समझ में आता है। मैडम कुत्ते को संभालती है और मैडम के पुत्र को नौकरानी। जागरूकता से दुनियाँ को देखेंगे - जानेंगे तो सब समझ में आता है। इस तरह हमने यह जाना कि दुनियाँ में पाप है, पाप का फल है, जो जीव को मिलता है। पुण्य है और पुण्य का फल भी प्रायः सभी लोग भोगते हैं। इस तरह कर्म के उदय को हमने जानने का प्रयास किया। (48)
SR No.009441
Book TitleAdhyatmik Daskaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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