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________________ ८८ दशकरण चर्चा २१. नरक में पुरुषवेद व स्त्रीवेद का उदय नहीं होता । २२. किसी भी भाववेद वाले के तीर्थंकर प्रकृति का उदय नहीं होता । २३. तीर्थंकर नामकर्म का उदय सर्वज्ञ आत्माओं के ही सम्भव है । २४. तीर्थंकर नामकर्म का उदय तेरहवें गुणस्थान से प्रारम्भ होता है और चौदहवें गुणस्थान के अन्त समय तक रहता है। २५. एक कषाय के उदय के समय अन्य कषाय का उदय नहीं होता । २६. जिस जीव के अनन्तानुबंधी क्रोध का उदय है, उसके उस क्रोध के उदयकाल में अन्य तीन प्रकार के क्रोधों (अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, प्रत्याख्यानावरण क्रोध तथा संज्ज्वलन क्रोध) का उदय है । अनन्तानुबन्धी आदि लोभ, मान, माया का नहीं है । २७. परिहार विशुद्धिसंयम में अप्रशस्तवेद (स्त्रीवेद व नपुंसकवेद) तथा आहारकद्विक आहारक शरीर व आहारक शरीरादगोपादम का उदय नहीं होता। २८. धनवान मनुष्य भी अन्तर्मुहूर्त से ज्यादा सुखी नहीं रह सकते, क्योंकि असाता की उदीरणा का उत्कृष्ट अन्तर भी अन्तर्मुहूर्त है। ७. प्रश्न: गुणस्थानानुसार उदयव्युच्छित्ति का कथन कीजिए? उत्तर : १. मिथ्यात्व का उदय मिथ्यात्व गुणस्थान के बाद आगे के गुणस्थानों में नहीं होता । २. अनन्तानुबन्धी ४ का उदय सासादन के बाद आगे के गुणस्थानों में नहीं होता । ३. मिश्र प्रकृति का उदय मिश्र (तृतीय) गुणस्थान में ही होता है, उसके बाद नहीं । से ४. अप्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क का उदय चौथे आगे के गुणस्थानों में नहीं होता । गुणस्थान ५. प्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क का पाँचवें से आगे प्रमत्तसंयत आदि के गुणस्थानों में उदय नहीं होता । ६. आहारक शरीर, आहारक शरीर अंगोपांग का उदय छठे गुणस्थान में ही होता है, आगे नहीं । Khata Ananji Adhyatmik Duskaran Book (47) आगमगर्भित प्रश्नोत्तर (उदयकरण) अ. ३ ८९ ८. सम्यक्त्व प्रकृति का उदय सातवें गुणस्थान के बाद नहीं होता । ९. हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, अरति व शोक इन ६ का उदय आठवें गुणस्थान के बाद नहीं होता। - १०. तीन वेद, संज्वलन क्रोध, मान व माया कषाय का उदय नौवें अनिवृत्तिकरण गुणस्थान से आगे के गुणस्थानों में नहीं होता । ११. सूक्ष्मकृष्टि को प्राप्त लोभ का उदय दसवें सूक्ष्मलोभगुणस्थान में ही होता है, आगे नहीं । १२. ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ५ अन्तराय तथा निद्रा, प्रचला का उदय बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान के बाद नहीं रहता । १३. जहाँ जिस प्रकृति का उदय होता है, वहीं उसका उदयकरण कहलाता है। १४. जीव को फल केवल 'उदयकरण' देता है। १५. फल तो उदित (उदय प्राप्त) उदीयमान कर्म ही देता है। ८. प्रश्न उदय का कथन अधिक मात्रा में क्यों है? उत्तर :- १. दस करणों में जीव को उदयागत कर्म ही फल देता है। २. दुनिया में कर्मोदय की चर्चा बहुत है । ३. जीव को विकार कर्मोदय के निमित्त से होता है। ४. बाह्य अनुकूल-प्रतिकूल संयोगों का मिलना भी कर्मोदय से होता है। ५. उदय के बिना कर्म की चर्चा व्यर्थ है । ६. संसारी जीव को कर्मोदय में रस है । ८. उदयावली उदय के बिना अन्य सकल करणों के लिए अयोग्य है। ९. उदयावली में मात्र स्वमुख या परमुख से उदय ही सम्भव है तथा नियत काल तक उसका सत्त्व भी है। १०. वर्तमान समय से लेकर एक आवली मात्र काल में उदय आने योग्य निषेकों को उदयावली कहते हैं।
SR No.009441
Book TitleAdhyatmik Daskaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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