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दशकरण चर्चा
६. बाह्य कारणों के होते हुए लोभ कषाय के तीव्र उदय से (एवं
उदीरणा से) जीव को परिग्रह की इच्छा उत्पन्न होती है। ७. यदि कोई जीव दुःखी है तो निश्चित है कि उसके असाता वेदनीय
कर्म का उदय है। ८. सुख (इन्द्रियसुख) का अनुभव (मोह के उदय होने पर ही) साता
वेदनीय कर्म के उदय में ही सम्भव है। ६. प्रश्न : उदय संबन्धी नियम स्पष्ट करे? उत्तर - १. कुल १४८ कर्मप्रकृतियों में से 122 कर्मप्रकृति उदय योग्य
होती हैं। यह बात अभेद-विवक्षा की है, भेद विवक्षा की अपेक्षा
तो १४८ कर्मप्रकृतियाँ ही उदय योग्य हैं। २. सकल प्रकृतियों में से २६ ध्रुवोदयी प्रकृतियाँ हैं - ५ ज्ञानावरण
की, ४ दर्शनावरण की (चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल दर्शनावरण), ५ अन्तराय की तथा १२ नामकर्म की प्रकृतियाँ (स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, निर्माण, अगुरुलघु, शुभ, अशुभ, स्थिर,
अस्थिर, तैजस व कार्माण।) ४. मूल प्रकृतियों का तो स्वमुखेन ही उदय होता है। ५. उत्तर प्रकृतियों का स्वमुख तथा परमुख उदय भी सम्भव हैं। ६. विवक्षित सर्वघाति के उदय के साथ उसी के देशघाति का उदय
बन जाता है; लेकिन सर्वथा देशघाति के उदय के साथ सर्वघाति
का उदय नहीं बनता। उदाहरण हास्यादि नौ नोकषायें। ७. एक जीव के एक भव में एक ही गति, एक ही आनुपूर्वी तथा एक
ही आयु का उदय सम्भव है। ऐसी और भी कई प्रकृतियाँ हैं। जैसे - जाति, शरीर, अंगोपांग इत्यादि।
आगमगर्भित प्रश्नोत्तर (उदयकरण) अ.३ ८. उच्च गोत्र का उदय मनुष्य और देवों के ही सम्भव है। ९. स्त्यानगृद्धि आदि तीन निद्राओं का उदय नर-तिर्यंच के ही सम्भव
है, अन्य के नहीं। १०. मिथ्यात्व का उदय मिथ्यात्वी के ही होता है।
प्रत्येक मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्व का वेदन करता है।
(धवला १५/२८५,२८६) ११. सम्यग्मिथ्यात्व का उदय सम्यग्मिथ्यात्वी के ही होता है।
इसका वेदन प्रत्येक सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव करता है। १२. सम्यक्त्व प्रकृति का उदय चौथे से सातवें तक ही सम्भव है। १३. इस सम्यक्त्व प्रकृति का वेदन प्रत्येक क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि
करता है । (गुणस्थान ४,५,६,७) १४. ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण व ५ अन्तराय इन १४ प्रकृतियों के
वेदक सभी जीव छद्मस्थ होते हैं। १५. केवली के असातावेदनीय का भी उदय होता है, पर वह फलदायी
नहीं होता; क्योंकि उनके मोह परिणाम और मोहकर्म का उदय
नहीं है। १६. केवली के असाता के उदय के काल में सुखोत्पादक साता भी
नियम से उदय को प्राप्त होती है। १७. संसारी जीवों के तो साता व असाता युगपत् उदय में नहीं आ
सकते, ऐसा नियम है। १८. अपनी-अपनी गति में अपनी-अपनी आयु का उदय सम्भव है,
अन्य का नहीं। यही बात सभी आयुओं के लिए समझनी
चाहिए। १९. देवों में उच्चगोत्र का ही उदय होता है, चाहे भवनत्रिक या किल्विषिक
अथवा आभियोग्य जाति के देव क्यों न हों। २०. नारकियों व तिर्यंचों में चाहे क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव हो, सभी के
द्रव्य से नीच गोत्र का ही उदय होता है।
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